देश को हिला देने वाले दिल्ली गैंगरेप के अपराधियों पर सुप्रीम कोर्ट ने मौत का अपना फैसला सुरक्षित रखकर, अपराधियों को एक नया सबक सिखाया है। जी हां, आज हम आपको बता रहें हैं उस गैंगरेप के बारे में जोकि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़क पर खुलेआम एक युवती के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर किया गया था और इस मामले में उस पीड़िता लड़की की मौत हो गई थी। यह गैंगरेप दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक कलंक बन कर उभरा था, जिसने पूरे देश में महिलाओं के प्रति सरकार और प्रशासन के “सुरक्षा” के दावों को सिरे से खारिज कर दिया था।
Image Source:
आपको हम बता दें कि इस अमानवीय घटना के चारों आरोपियों मुकेश, अक्षय, पवन और विनय को दिल्ली के साकेत फास्ट ट्रेक कोर्ट से मौत की सजा सुनाई गई थी और इस फैसले पर दिल्ली के हाई कोर्ट ने 14 मार्च 2014 को अपनी मोहर लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ सभी आरोपियों के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली गई थी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने से आरोपियो की फांसी की सजा आगे टल गई थी। यह मामला तीन न्यायधीशों की बेंच के पास गया और कोर्ट ने इस केस की न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अपनी ओर से 2 एमिक्स क्यूरी भी नियुक्त किए थे। यह केस एक वर्ष तक लगातर आगे बढ़ा और 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। आज 5-5-2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अपना अंतिम आदेश देते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने गैंगरेप के चारों आरोपियों की मौत की सजा को बरकरार रखते हुए कहा है कि “इस बर्बरता के लिए माफी नहीं दी जा सकती, अगर किसी एक मामले में मौत की सजा हो सकती है, तो वो यही है, निर्भया कांड सदमे की सूनामी था।”
Image Source:
गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा मिलने के बाद केस में पीड़िता की ओर से जुड़े सभी लोगों में भारतीय न्याय व्यवस्था में एक विश्वास पैदा हुआ है। गैंगरेप पीड़िता “निर्भया” की मां आशा देवी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि “मैं सारे समाज का धन्यवाद करती हूं और उम्मीद करती हूं कि हम आगे और भी बच्चियों के लिए ऐसी लड़ाई लड़ेंगे। कहीं न कहीं लचर व्यवस्था तो है, लेकिन आज कोर्ट में साबित हो गया कि न्याय में देर है, अंधेर नहीं।” लेकिन बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती है, पुरानी कहावत है “जितने मुंह, उतनी बातें”, वर्तमान में अब समाज के लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दो भागों में विभाजित दिखाई पड़ रहें हैं। कुछ लोग कोर्ट के इस फैसले का स्वागत कर रहें हैं और इसको दोषियों को सबक सिखाने वाला बता रहें हैं, तो वहीं कुछ लोग कोर्ट द्वारा दोषियों को मौत की सजा देने को न्यायोचित नहीं बता रहें हैं, ऐसे लोगों को मानना है कि मौत की सजा अब भारत सहित दुनिया के चुनिंदा देशों में ही है, इसलिए अब भारत को भी मौत की सजा का प्रावधान खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि इससे कहीं न कहीं मुजरिम के परिवार को भी समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है।
Image Source:
इस प्रकार से समाज कोर्ट के फैसले के बाद लोग दो पक्षों के बीच विभाजित दिखाई पड़ रहा हैं। प्रोफेसर मधु किश्वर ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है वे कहती हैं कि “वह पहले मौत की सजा के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन ऐसे मामलों में जहां कोई अपराध के लिए प्रतिबद्ध है और उसका मकसद ही अधिकतम हत्याएं करना है, वहां कोई और विकल्प नहीं है।”, दूसरी ओर वरिष्ठ वकील युग मोहित चौधरी ने कोर्ट के फैसले को सकारात्मक नहीं बताया है वे कहते हैं कि “इससे अपराधी के प्रियजनों में बदले की भावना आती है। उन्हें लगता है कि सरकार और समाज किसी की हत्या कर सकते हैं, तो मैं अपना बदला पूरा करने के लिए किसी को क्यों नहीं मार सकता। सोच-समझकर किसी की जान लेना, इससे खराब चीज और क्या सोची जा सकती है।”
तो कुल मिलाकर अब देखने में यह आ रहा है कि किसी लड़की के गैंगरेप पर भी समाज के लोग कोर्ट के आदेश पर भी उंगलियां उठाने लगे हैं। ऐसे लोग जो अपराधियों के लिए ही कोर्ट से सजा की माफी की उम्मीद रखते हैं, उनको यह भी समझना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उंगली उठाने का मतलब अपने देश की न्याय व्यवस्था को दुनिया के सामने कमजोर और गलत ठहरना है। खैर, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में चारों मुजरिमों की सजा को बरकरार रखकर, अमानिय कार्य की मानसिकता रखने वाले लोगों को “भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं” वाली कहावत को अच्छी तरह से समझा दिया है।