रक्षा बंधन का त्योहार वैसे तो हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है पर इतिहास के पन्नो में इसका इतिहास पढ़ने पर यह एक सार्वजनीन और सार्वजनिक त्योहार के रूप में सामने आता है। पुरातन समय के हिसाब से यह त्योहार लगभग 6 हजार वर्ष पुराना माना है। पौराणिक संदर्भ में इसी त्योहार के प्रतीक रूप में अनेकों कहानियां लिखी हुई है जो की कई हजार वर्षों की घटनाओं पर आधारित हैं, ये सब पुरातन घटनाएं इस त्यौहार की प्राचीनता से हमको अवगत कराती है पर आज के दौर में बहुत ही कम लोग इन पुरातन घटनाओं को जानते हैं। जिसके कारण वे रक्षा बंधन के इस प्रमुख त्योहार के महात्मय और इतिहास के महत्व से अनभिज्ञ रह जाते हैं, इसलिए आज हम आपको न सिर्फ इस प्रमुख त्योहार का प्राचीन इतिहास बता रहें हैं बल्कि प्राचीन समय से वर्तमान समय तक इसके महत्त्व और देश पर पड़ते इसके सार्वजनिक प्रभाव से भी अवगत करा रहें हैं। आइये जानते हैं रक्षा बंधन का सही और सच्चा इतिहास।
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रक्षा बंधन के प्राचीन इतिहास का प्रारंभ –
रक्षा बंधन का त्योहार आज के समय में प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है पर सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यह त्योहार प्राचीनकाल से ही भारत भूमि पर प्रचलित रहा है , इसके उद्धरण हिन्दू धर्म के कई ग्रंथो में से मिलते हैं। आज हम आपको इन्हीं ग्रंथों में से 2 प्रमुख ग्रन्थ “स्कन्द पुराण” और “महाभारत” की दो घटनाओं की जानकारियां यहां दे रहें हैं जो की रक्षाबंधन के त्योहार की प्राचीनता को प्रकट करती है।
1- वामन अवतार और रक्षाबंधन –
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वामन अवतार की कथा हमें “स्कन्द पुराण” में मिलती है, इस घटना में भगवान विष्णु का अवतार “वामन” राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं और राजा बलि, भगवान वामन को हर समय अपने साथ में ही रहने का वरदान मांग लेते हैं पर इस वरदान से भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी को परेशानी होती है क्योंकि वरदानस्वरूप भगवान विष्णु बलि के पास में रहने लगे थे। इस परेशानी को दूर करने के लिए लक्ष्मी जी एक उपाय करती है। वह राजा बलि के हाथ में रक्षा सूत्र यानि राखी बांध कर उनको अपना भाई बना लेती हैं और भगवान विष्णु को राजा बलि के वरदान से मुक्त करा कर अपने साथ ले आती है।
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इस कथा के अलावा हिन्दू धर्म के प्रत्येक धार्मिक कार्य में भी रक्षा सूत्र बांधा जाता ही है जो की राखी का ही प्रतीक होता है, इसी रक्षा सूत्र को वर्तमान समय में हम लोग “कलावा” या “मोली” के नाम से जानते हैं। किसी भी धार्मिक कार्य में रक्षा सूत्र यानि कलावा बांधते समय पंडित लोग एक मंत्र का उच्चारण करते हैं। जिसका अर्थ है “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।”
इस प्रकार से देखा जाए तो रक्षा बंधन का पर्व पुरातन काल से चला आ रहा है। दूसरी तरफ महाभारत में भी इसी प्रकार का एक प्रसंग मिलता है, आइये उसको भी जानते हैं।
2- महाभारत और रक्षाबंधन –
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महाभारत में भी इसी प्रकार का एक प्रसंग आता है। जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने जब “शिशुपाल” का वध किया तो उस दौरान के युद्ध में उनके हाथ में चोट आ गई थी। जिसके कारण उनकी अंगुली से खून निकल आया था। यह देख कर द्रोपदी बहुत दुखी हुई और उसने अपनी साड़ी से कपड़ा फाड़ कर कृष्ण की अंगुली में बांध दिया, उस समय से ही कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था और आगे जब भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण होने वाला था तो कृष्ण ने ही भाई के फर्ज को पूरा करने के फलस्वरूप ही द्रोपदी की लाज बचाई थी।
मध्य मुगलकाल और रक्षाबंधन का इतिहास –
देखा जाए तो मध्य मुगलकाल में भी रक्षाबंधन का त्यौहार बहुत ही प्रचलित और प्रसिद्ध था, इस बात का उद्धरण हमें मध्यकाल के इतिहास से प्राप्त होता हैं। इस संबंध में मेंवाड़ की रानी कर्मावती और शहंशाह हुमांयू के जीवन की घटना को हम आपके सामने रख रहें हैं।
रानी कर्मावती और शहंशाह हुमांयू और रक्षाबंधन –
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यह ऐतिहासिक घटना आपको यह बताती है कि रक्षाबंधन का त्योहार किसी धर्म की सीमाओं से भी परे अपना प्रभाव रखता है, यह घटना है मेंवाड़ की रानी कर्मावती द्वारा शहंशाह हुमायूं को राखी भेजने की। हुआ यह था की रानी कर्मावती के पति का निधन हो चुका था और अब वे ही सारे राजतंत्र को चलाती थी। इसी बात को देख कर शहंशाह बहादुरशाह ने रानी के महल पर हमला कर उसको अपने कब्जे में लेने की सोची और रणनीति बना कर किले पर चढ़ाई कर दी। इसकी सूचना जब रानी कर्मावती को मिली तो उन्होंने शहंशाह हुमायूं को राखी के जरिये अपने राज्य को बचाने का प्रस्ताव भेजा, हुमायूं ने रानी कर्मावती की राखी को स्वीकार कर बहादुरशाह के खिलाफ बगावत कर दी और कर्मावती के राज्य की रक्षा की।
महाराजा पुरूवास और सिकंदर की पत्नी का रक्षासूत्र –
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इसी प्रकार की एक घटना विश्व विजेता सिकंदर के जीवन में भी देखने को मिलती है, इतिहास के अनुसार सिकंदर की पत्नी ने तत्कालीन हिन्दू राजा “पुरूवास” को राखी बांधकर यह वचन लिया था कि यदि उनके पति और पुरूवास के बीच में युद्ध होता है तो वे सिकंदर को नहीं मारेंगे। पुरूवास ने अपने इस वचन को हाथ में बंधी राखी के लिए निभाया और सिकंदर को जीवनदान दिया।
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इस प्रकार से देखा जाए तो रक्षाबंधन का त्योहार बहुत प्राचीन है, हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में लोगों ने इसका प्रयोग अलग-अलग रूपो में किया पर देखा जाए तो अंत में सबका उद्देश्य एक ही रहा है। मध्यकाल में भी राखी का काफी प्रचलन रहा है और वर्तमान समय में भी बहुत सी महिलाएं सेना के लोगों को राखियां बांधती हैं। आज के समय में बहुत से पर्यावरणविद और समाज सेवक लोग पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ो को भी राखी बांधते देखें जा सकते हैं, अंत में इतना ही हम कह सकते हैं कि रक्षाबंधन का त्योहार एक ऐसा त्योहार है, जिसके द्वारा आप अपने धर्म या जाति से उठकर समग्र मानवजाति को अपना बना सकते हो और सबके बन सकते हो।