भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरू हो चुकी है इसलिए आज हम आपको बता रहें हैं इससे जुड़े वे रोचक तथ्य जो कम ही लोग जानते हैं। जी हां, यह सच है कि भगवान जगन्नाथ की यात्रा हालांकि अपने ही देश में प्राचीन काल से होती रही है और इस वर्ष भी यह 25 जून से शुरू हो चुकी है, पर इसके बाद भी इससे जुड़े तथ्य कम लोग ही जानते हैं। इस कारण ही आज हम आपको इसके अद्भुत रोचक तथ्यों को बता रहें हैं, तो आइए जानते हैं इस यात्रा के बारे में…
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सबसे पहले हम आपको बता दें कि यह यात्रा उड़ीसा प्रदेश के पूरी नामक स्थान से निकलती है जो कि भारत के विशेष धार्मिक स्थानों में गिना जाता है। इस यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलदेव तथा बहन सुभद्रा की यात्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाये जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को यहां भगवान जगन्नाथ तथा बलदेव जी को बलभद्र के नाम से जाना जाता है। इन तीनों एक लिए तीन अलग अलग रथ बनाये जाते हैं। जिनके रंग भी अलग-अलग ही होते हैं। ये तीनों रथ नीम की ही लकड़ी से बनाये जाते हैं और इन सभी रथों के निर्माण में किसी प्रकार के लोहे के पेंच या कील का उपयोग नहीं किया जाता है।
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इस रथ यात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ होता है और उनके पीछे देवी सुभद्रा का तथा सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। इस रथ यात्रा के विशाल रथ बनाने के लिए वसंत पंचमी से ही लकड़ी ढूंढने का कार्य शुरू हो जाता है। यह रथ यात्रा प्रारंभ में गुंडीचा मंदिर पहुंचती है।
गुंडीचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है और इसके बाद में देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को मनाने के लिए यहां आती है और फिर वे वापिस लक्ष्मी मंदिर लौटती हैं तथा फिर भगवान जगन्नाथ उनको यहां से मनाने के लिए जाते हैं। इसके बाद में यह रथ यात्रा अपने अंतिम समय में फिर से मुख्य मंदिर की ओर लौटती है। इस प्रकार से इस रथ यात्रा का विधान पूरा होता है।