अपने देश में ऐसे बहुत से स्थान हैं जिनसे कोई न कोई रहस्य जुड़ा हुआ है, पर आज हम आपको एक ऐसी सुरंग के बारे में बता रहे हैं जो है मौत का दूसरा नाम। असल में इस सुरंग में आज तक जो भी गया है वह कभी वापस नहीं आया। इस सुरंग में अभी तक गए बहुत से लोगों की मृत्यु हो चुकी है इसलिए वर्तमान समय में इस सुरंग को बंद कर दिया गया है, पर ऐसा बहुत कुछ है जो पहले घट चुका है। आज हम आपको इस सुरंग से जुड़े भयावह भूतकाल के साथ इस सुरंग की ऐतिहासिकता को भी बताएंगे। यह सुरंग कानपुर के फतेहपुर में खजुहा नामक गांव में स्थित है, इसको बागबादशाही भी कहा जाता है।
किसने बनवाई थी यह सुरंग –
प्राचीन इतिहास की बात करें तो इस सुरंग का निर्माण 350 साल पहले औरंगजेब ने कराया था। जानकार बताते हैं कि पहले इस स्थान पर शाहजहां के पुत्र शाहशुजा का राज्य था और इसको हड़पने के लिए औरंगजेब ने कई बार आक्रमण किया पर वह हार गया। इसके बाद एक बार फिर से 5 जनवरी 1659 में औरंगजेब ने यहां पर आक्रमण किया और शाहशुजा को हरा दिया। अपनी विजय की ख़ुशी में औरंगजेब ने यहां जश्न मनाया और तब इस सुरंग का निर्माण कराया था।
किस प्रकार की है यह सुरंग –
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इस सुरंग पर पूर्व दिशा की ओर 3 मीटर ऊंचा चबूतरा है, जिसमें 2 बारादरी बनाई गई है। बारादरी के सामने सुन्दर तालाब भी बनाया गया था और विशाल कमरे भी। उस समय एक कुआं भी बनाया गया था जो कि आज भी इस सुरंग के मध्य स्थान पर बना हुआ है। बारादरी के सामने एक सुन्दर बगीचा भी बनाया गया था। लोगों का मानना है कि औरंगजेब इन बारादरी में ही रहता था। खजुहा गांव के निवासी बताते हैं कि यह सुरंग कोलकाता से पेशावर तक जाती है, पर आज तक यहां जो भी गया है वह कभी वापस नहीं आ पाया। गांव के निवासी बताते हैं कि एक बार हमारे गांव में शादी थी और बारात में आये बहुत से लोग इस सुरंग को देखने के लिए इसमें चले गए, पर आज तक वापस नहीं आ पाये। वर्तमान में देखरेख की कमी के कारण यह सुरंग जर्जर हो रही है। ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।