भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के बारे में आप सभी जानते ही हैं, पर क्या आप जानते हैं कि इनका निर्माण आखिर कैसे हुआ था? यदि नहीं, तो आज हम आपको इस बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। सबसे पहले हम आपको बता दें कि ज्योतिर्लिंग का सामान्य अर्थ होता है “ज्योति पिंड” पर पुराणों में ज्योतिर्लिंग को “व्यापक ब्रह्मात्मलिंग” कहा गया है जिसका अर्थ होता है “व्यापक प्रकाश।” वर्तमान में सावन का महीना चल रहा है और शिव भक्तों की लंबी-लंबी कतारें शिवालयों पर लगी हुई हैं। बहुत से शिव भक्त इस समय ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए भी यात्रा करते हैं, इसलिए उन स्थानों पर भी सावन के इस माह में काफी भीड़ लगी रहती है, पर ज्योतिर्लिंगों का निर्माण किस प्रकार से हुआ इस बारे में कम लोग ही जानते हैं, इसलिए आज हम आपको शिव महापुराण के अनुसार इस रहस्य को यहां बता रहें हैं।
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आपको हम यह भी बता दें कि शिव महापुराण में बुध्दि, अहंकार, चित्त, मन, माया, ब्रह्म, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश को भी ज्योतिर्लिंग माना गया है। पहले के इतिहास को यदि हम देखते हैं तो पता लगता है कि विक्रम संवत से सहस्राब्दी पूर्व पृथ्वी पर काफी उल्कापात हुआ था। उस समय के आदिमानव को यह उल्कापात भगवान शिव के आविर्भाव लगा इसलिए जहां-जहां भी उल्का पिंड गिरे वहां पर उनकी सुरक्षा के लिए मंदिरों का निर्माण कर दिया गया। इस प्रकार से ही दुनिया में बहुत से शिवालयों का निर्माण हुआ, पर बाद में 108 शिवालयों को प्रमुख माना गया और अब उनमें से सिर्फ 12 ही बचे हैं जिनको हम ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। ज्योतिर्लिंगों का निर्माण किस प्रकार से हुआ इस बारे में शिव महापुराण कहता है कि प्राचीनकाल में कुछ उल्कापिंड धरती पर गिरे और उनका प्रकाश कुछ समय के लिए चारों ओर फैल गया था। इसके बाद उल्कापिंड नीचे गिरे। वर्तमान में अब इनमें से 12 ही पिंड ज्ञात अवस्था में हैं। जिनमें से कुछ का निर्माण भगवान शिव ने स्वयं किया था। इस प्रकार से ज्योतिर्लिंगों का निर्माण हुआ और यह हमारे सामने आए।