आपने ये कहावत जरूर सुनी होगी कि- जिस तरह हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती, ठीक उसी तरह से सभी इंसान एक जैसे नहीं होते। भगवान हर इंसान में कुछ अच्छाइयां तो कुछ बुराइयां जरूर देता है। जैसे की कोई पढ़ाई में तेज होता है तो कोई खेलकूद में, तो किसी के पास गजब का हुनर होता है। जिसके चलते देखा जाता है की जिंदगी में सफल वहीं इंसान होता है, जो अपनी मेहनत के बल पर साकारात्मकता और लगन से काम करता है। ऐसी ही मेहनत और लगन की अनोखी मिसाल है एक कुली के बेटे की कहानी। जिसका नाम पीसी मुस्तफा है और जिसने महज 25,000 रूपये से अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर एक कंपनी की शुरूआत की।
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लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि केरल के वॉयनाड जिले के एक दूरदराज गांव में रहने वाले पी सी मुस्तफा की ये कंपनी आज के वक्त 100 करोड़ की कंपनी बन गई है। जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं कि मुस्तफा के पिताजी एक कुली थे। वहीं मां भी पढ़ी लिखी नहीं थी। साथ ही मुस्तफा भी 6 वीं क्लास में फेल हुए थे लेकिन हार कर जीतने वाले को ही बाजीगर कहते हैं। ऐसे ही मुस्तफा ने कभी हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई को जारी रखा। जिसके बाद उन्होंने बेंगलुरु के भारतीय प्रबंधन संस्थान और कालीकट के ही राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पढ़ाई की। बता दें कि आज के वक्त में मुस्तफा अपनी 100 करोड़ की कंपनी के मालिक है। जो आईडी नाम से ताजा पैक इडली और डोसा, डोसा बैटर और रोटी बनाती है। वहीं उनकी इस कंपनी के प्रोडेक्ट देश की मेन सिटीज में ही मिलते हैं। वहीं अब आपको जानकर हैरानी होगी की मुस्तफा अब अपनी कंपनी में ग्रामीणों को रोजगार देने का काम भी कर रहे हैं।
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मुस्तफा का कहना है कि, “मैं वायनाड में कलपट्टा के पास चेन्नालोड नामक एक छोटे से गांव में पला बढ़ा। गांव शहर से काफी दूर था और वहां केवल एक ही प्राथमिक स्कूल था। गांव में न ही पक्की सड़क थी और न ही बिजली थी। रोज़ाना उच्च विद्यालय जाने के लिए हमको कम से कम चार किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी। रोज़ इतना लम्बा सफर तय करने की वजह से कई बच्चे शिक्षा ग्रहण भी नहीं कर पाये। मेरे पिता ने भी कक्षा 4 के बाद पढ़ाई बंद कर दी थी और एक कॉफी बागान पर कुली के रूप में काम करते थे। मेरी मां कभी स्कूल नहीं गयी। अपने माता-पिता का मैं सबसे बड़ा और इकलौता बेटा हूं और मेरी तीन छोटी बहनें हैं।”
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जान लें कि मुस्तफा एक इंजीनियर बनना चाहते थे। लेकिन शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने एक दिन एक लड़के को डोसा के बैटर को पॉलीथीन में रबरबैंड से बांधते देखा। जिसके बाद उन्होंने अपने इस विचार को बड़े पैमाने से शुरू करने का मन बनाया। इसके लिए मुस्तफा को उनके पांच चचेरे भाईयों ने भी काफी समर्थन किया। वहीं उन्होंने उनकी मदद से पहले तो 550 वर्ग की जगह ली और दो मिक्सर ग्राइंडर और एक सील करने वाले मशीन को रखकर काम को शुरू कर दिया। वहीं अपने भाई की सलाह पर डोसा और इडली के नामों को मिलाकर उसने अपनी कंपनी का नाम आई.डी रखा। 2005 में जब इस कंपनी की शुरूआत हुई थी। उस वक्त इस कंपनी में एक दिन में 10 पैकेट बनते थे लेकिन वक्त बदलता गया और अब उनकी कंपनी में 1100 कर्मचारी काम करते हैं। साथ ही एक दिन में 50,000 पैकेट तैयार होते है। ऐसे में मुस्तफा की कहानी सच में ये साबित करने के लिए काफी है की गर इंसान दिल से किसी काम को करने का मन बना ले तो कामयाबी उसके कदम चुमने से नहीं चुकती।