अपने बहुत से प्राचीन मुस्लिम कृष्ण-भक्त लोगों के बारे में सुना ही होगा पर आज हम आपको आधुनिक भारत के उस मुस्लिम कृष्ण भक्त के बारे बता रहें हैं जिसको जानकार आपको अपनी संस्कृति पर नाज होगा। जी हां, वैसे तो अपने देश में कई ऐसे मुस्लिम लोग हुए हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति में गुजार दिया पर आज हम आपको जिस मुस्लिम कृष्ण भक्त से मिलवा रहें हैं वह आधुनिक काल का ही है। आपको हम बता दें की मौलाना हसरत मोहानी अपने देश के वह व्यक्ति रहें हैं जिन्होंने अपने जीवन में कृष्ण प्रेम को सर्वोपरि माना। आइये अब हम आपको विस्तार से बताते हैं मौलाना हसरत मोहानी के बारे में।
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मौलाना हसरत मोहानी का जन्म उन्नाव जिले के मोहन गांव में 1 जनवरी 1875 को हुआ था। जैसा की आप जानते ही हैं की उस समय हमारे देश में अंग्रेजी हुकूमत थी। उस समय में कम उम्र में ही मौलाना हसरत का विवाद अंग्रेजो से हो गया था, सो देश के लिए उन्होंने कई वर्ष तक जेल में सजा काटी। उसके बाद मौलाना हसरत ने अपनी शेरो-शायरी के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य किया और देश-प्रेम का भाव लिए हुए बहुत से शेरो का सृजन किया। मथुरा के निवासी वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार डॉ. जहीर हसन, मौलाना हसरत मोहानी के बारे में कहते हैं की “यदि इस प्रकार के लोग देश में और होते तो कभी धार्मिक भावनाएं आहत ही नहीं होती। मौलाना हसरत के जीवन में देश भक्ति तथा कृष्ण भक्ति दोनों ही देखने को मिलती हैं। वे जब कभी भी मथुरा आते थे तो यहां के प्राचीन मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण की कथा तथा प्रवचन जरूर सुनते थे। उन्होंने भगवान कृष्ण पर कई रचनाएं भी की थी और कृष्ण भक्ति की झलकियां उनके साहित्य में मिलती हैं। वे भगवान कृष्ण को “हजरत कृष्ण अलैहिररहमा” कह कर पुकारते थे और उनको पैगम्बर मानते थे। कृष्ण प्रेम और कृष्ण भक्ति उनके साहित्य तथा जीवन दोनों में ही साफ़ झलकती थी।” आपको जानकर हैरानी होगी की अंग्रेजी हुकूमत के समय देश के लोगों की रगो में देश भक्ति का रंग भरने वाला नारा ” इंकलाब जिंदाबाद” इन्होंने ही दिया था।
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“उर्दू-ए-मोअल्ला” नामक अपनी किताब वे उन्होंने अंग्रेजो की दमनकारी नीतियों के विरोध का एक अनाम लेख छापा था। अंग्रेज सरकार ने उस लेख के लेखक का नाम जानने के लिए दबाव बनाया तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली और इसके लिए उनको एक वर्ष की जेल की सजा भी हुई। फिल्म निकाह की ग़ज़ल “चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है” बहुत प्रसिद्ध हुई पर कम लोग ही जानते हैं इसके रचनाकार मौलाना हसरत मोहानी ही थे। मौलाना हसरत प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर मथुरा आते थे और यहां के मंदिरो में जो भी देखते और अनुभव करते थे उस सभी को वे अपनी कृष्ण भक्ति के साथ अपनी रचनाओं में पिरो देते थे। मौलाना हसरत की रचना “कुल्लीयात-ए-हसरत” में उनकी कृष्ण भक्ति के अनेक उद्धरण देखने को मिलते हैं।
“मथुरा नगर है आशिकी का, दम भर्ती है आरजू उसी का
हर जर्रा-ए-सरजमीने गोकुल दारा है, जमाल ए दिलबरी का”
इस प्रकार की उन्होंने बहुत सी रचनाएं की। वे मथुरा, वृंदावन के कई मंदिरों में जब जाते तो वहां भजन भी गाते थे। 13 मई 1951 को मौलाना हसरत मोहानी चिर निद्रा में विलीन हो गए थे। उनके करीबी लोगों का कहना था कि वे अपनी मौत से पहले मथुरा गए थे और उन्होंने कहा था कि यह उनका अंतिम दर्शन है।