केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद उसे कई ऐसी जिम्मेदारियां भी मिली, जिसके पूरे होने का सपना लगभग भारत का हर जिम्मेदार नागरिक देखता है। चाहे वो काले धन का मामला हो या भ्रष्टाचार का या फिर भारत की गिरती अर्थव्यस्था का। इन्हीं देश से जुड़े कुछ सवालों और सपनों के बीच में एक मुद्दा यह भी था और इसके लिए हर भारतीय नागरिक ने सपना देखा था, वह था कोहिनूर के भारत वापस आने का, लेकिन सरकार के एक जवाब से अब यह सपना किसी भी तरह से पूरा होता नजर नहीं आ रहा।
हालांकि इस प्रकार का सवाल उस समय भी उठा था जब 2010 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत में मनमोहन सिंह की सरकार के समय भारत आये थे। उस समय डेविड कैमरन ने कहा था कि “कोहिनूर लंदन में ही रहेगा। अगर एक बार इस हीरे को वापस लौटाने की हामी भर दी जाए तो पता चलेगा कि पूरा ब्रिटिश संग्रहालय अचानक खाली हो गया।” उस समय इस मुद्दे का कोई हल नहीं निकल पाया था।
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इसके बाद यह सवाल भारत के आम आदमी के मन में फिर से उस समय जागा जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंग्लैंड की महारानी के बुलावे पर उनके पास डिनर के लिए गए थे। उस समय जहां आम आदमी से लेकर संसद में बैठे लोगों तक को कोहिनूर का मसला सुलझने की उम्मीद थी, वहीं विपक्षी पार्टियों ने इस पर केंद्र सरकार का मजाक भी उड़ाया था। इंग्लैंड से मोदी के आने के बाद कई लोगों के मन में यह प्रश्न बना रहा कि वहां कोहिनूर को लेकर कोई बात हुई या नहीं? इसी बीच पकिस्तान ने भी कोहिनूर को अपना कह कर इस पर अपना हक़ जताया।
इन सब के बीच भारत के कुछ लोगों द्वारा कोहिनूर को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक याचिका डाली गई, जिस पर अभी कोर्ट में कार्यवाही चल रही है। हाल ही में कोहिनूर के मसले पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से जबाव तलब करते हुए पूछा कि कोहिनूर को भारत में लाने के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं? इस पर केंद्र सरकार द्वारा जो जवाब दिया गया उससे पूरा देश हैरान है।
सरकार की तरफ से कहा गया है कि “कोहिनूर चोरी नहीं किया गया था और न ही उसको जबरन ले जाया गया था, उसको महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी दिलीप सिंह ने 1849 के सिख युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी को हर्जाने के तौर पर दिया गया था।”
केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट को यह जवाब भले ही तर्कयुक्त और घुमावदार भाषा में ही क्यों न दिया गया हो, पर यह जवाब कहीं न कहीं कोहिनूर के भारत में वापस आने की संभावनाओं का अप्रत्यक्ष रूप से खंडन करता ही नजर आ रहा है। केंद्र सरकार द्वारा कोर्ट को उत्तर के रूप के दिए इस ऐतिहासिक तथ्य से ही बुद्धिजीवी वर्ग साफ़-साफ़ अंदाजा लगा सकता है कि कोहिनूर के भारत में आने की क्या संभावना वर्तमान समय में है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की याचिका को अभी ख़ारिज न करते हुए केंद्र सरकार को 6 हफ्ते का समय दिया है। साथ ही कहा है कि यह बतायें कि अब तक कोहिनूर को भारत में लाने की क्या कोशिशें हुई हैं और आगे क्या होनी चाहिए ?
देखा जाए तो भारत में ही यह मामला काफी पेचीदा है। एक ओर कोर्ट केंद्र सरकार को तलब कर रहा है और दूसरी ओर केंद्र इस मामले में संस्कृति मंत्रालय के नोट को पढ़ कर इसे रफादफा करता नजर आ रहा है। वहीं इसी कोहिनूर को लेकर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी अपना दावा ठोंका है। जानकारी के लिए बता दें कि पाक के हाईकोर्ट में कोहिनूर को लेकर एक अर्जी दाखिल हुई थी जिसको स्वीकार भी कर लिया गया था। पाक में “कोहिनूर मिशन” के चेहरे 77 साल के वकील जाबेद इकबाल ने यह अर्जी पाक हाई कोर्ट में दी थी। जावेद साहब का कहना है कि “कोहिनूर को रणजीत सिंह के पोते दिलीप सिंह से अंग्रेजों ने छीन लिया था और यह चोरी क्योंकि लाहौर से हुई थी इसलिए इस हीरे पर पकिस्तान का ज्यादा हक़ है।” मुमकिन है कि आने वाले समय में जावेद साहब एलिजाबेथ को कटघरे में खड़ा करके पूछ लें कि “महारानी साहिबा तो कब कोहिनूर को पाक के हवाले कर रही हैं आप।”
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खैर भारत में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच चुइंगम की तरह खिंचते इस मुद्दे के बीच पकिस्तान का कूदना “गावं बसा नहीं और लुटेरे पहले चले आये” वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है।
वर्तमान समय में केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि यदि हम लोग कोहिनूर पर अपना हक़ जताते हैं तो दूसरे मुल्क भी अपनी उन सभी वस्तुओं पर अपना हक़ जता सकते हैं जो कि हमारे संग्रहालय में हैं। हालांकि केंद्र सरकार की बात नीतिगत कही जा सकती है पर केंद्र की ओर से दिए गए इस बयान में भी उसकी असमर्थता साफ़ झलकती है। अब देखना यह है कि बीते ऐतिहासिक समय के तथ्य और आधार आज की राजनीति पर ज्यादा भारी पड़ते हैं या पाकिस्तान की तर्कहीन बातें या फिर “कानून से बड़ा कोई नहीं होता” वाली बात सही साबित होती है। फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता है की “वक्त वक्त की बात है।”