अपने देश में टूटी-फूटी खंडित प्रतिमाओं को घर में भी नहीं रखा जाता है, पर हमारे ही देश के इस स्थान पर प्राचीन काल से बिना सिर वाली प्रतिमाओं का पूजन चलाता आ रहा है। इसके अलावा यह स्थान 900 वर्ष पुराना एक टूरिस्ट प्लेस भी है। असल में मान्यता यह है कि खंडित प्रतिमाएं घर में नहीं रखनी चाहिए क्योंकि ये अशुभता का प्रतीक मानी जाती है। ऐसे में मंदिर में इस प्रकार की प्रतिमाओं को रखने के बारे में सोचा भी नही जा सकता है, लेकिन हम आपको अपने ही देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहें हैं जो बिना सिर वाली प्रतिमाओं के पूजन के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का स्थान उतना ही पुराना है जितनी रामायण या महाभारत की कथा। आपको बता दें कि यह स्थान उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ में है। इस जिले के अंतर्गत आने वाले गोंडे गांव में स्थित है “अष्टभुजा धाम मंदिर”, यहीं पर खंडित प्रतिमाओं को पूजा जाता है।
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औरंगजेब ने कटवा डाले थे प्रतिमाओं के सिर
ASI के अनुसार 1699 ई. में औरंगजेब ने अपने सैनिकों को सभी मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था। इसके बाद इस मंदिर के पुजारी ने मंदिर के द्वार को मस्जिद के द्वार की आकृति में निर्मित करा डाला था ताकि मंदिर टूटने से बच जाएं। सैनिक इस मंदिर को देख कर भ्रम में पड़ गए थे, पर उनको मंदिर के अंदर का घंटा दिखाई पड़ गया। इसके बाद इस मंदिर की सभी प्रतिमाओं के सिर तोड़ डालें गए थे। आज भी मंदिर की सभी प्रतिमाएं उसी सिर कटी स्थिति में संरक्षित हैं। आज भी मंदिर में इन प्रतिमाओं का पूजन होता है। इस प्रकार से इस अष्टभुजा धाम मंदिर में खंडित अवस्था में स्थित प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है।