कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से आठ किलोमीटर व कामाख्या से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
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पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल पर्वत अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
कामाख्या तंत्र के अनुसार –
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
इस बारे में राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य एवं दस महाविद्याओं नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वतः ही बंद हो जाते हैं। उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियां एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।
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कामाख्या 51 शक्ति पीठों में से एक है और भारत में सबसे लोकप्रिय है। कामाख्या देवी माता सती की योनि वहां गिरी थी और कामाख्या मंदिर इसलिए ही शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि यह जगह पूरे ब्रह्मांड का केंद्र बिंदु है। दस महाविद्या (काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला) की पूजा भी कामाख्या मंदिर परिसर में की जाती है।
इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जमीन से लगभग 20 फिट नीचे एक गुफा में स्थित है। गुफा में कोई छवि या मूर्ति नहीं है। एक योनि के आकार की फांक वहां है। फूल, साड़ी, चुनरी, सिन्दूर और प्रसाद के साथ वहां उपासना की जाती है। तांत्रिक कामाख्या देवी को तंत्र की देवी के रूप यहां पूजते हैं और दुनिया भर से तंत्र साधना के लिए यहां आते हैं। एक तांत्रिक स्वयं के जीवन को इस मंदिर का दौरा किए बिना अधूरा मानता है।
कामाख्या देवी की पूजा-
*दुर्गा देवी की पूजा नौ दिनों के लिए की जाती है। बलिदान की प्रथा कर तौर पर लौकी, कद्दू, मछली, बकरी, कबूतर और भैंसों की बलि दी जाती है। यहां तक कि आटे से बने एक मानव आकार की प्रतिमा मानव बलि की बुढ़ापा परंपरा को पूरा करने के लिए की जाती है।
*यह प्रभु कामेश्वर और देवी कामेश्वरी के बीच एक प्रतीकात्मक शादी के रूप में पूसा के महीने में की जाती है।
*मंदिर देवी की माहवारी के लिए तीन दिनों के लिए बंद रहता है और चौथे दिन एक बड़े उत्सव के साथ खुलता है।
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कामाख्या देवी का मंत्रः
ॐ कामाख्याम कामसम्पन्नाम कामेश्वरिम हरप्रियाम।
कामनाम देहि मे नित्यम कामेश्वरि नमोस्तुते॥