माना अगर इंसान को अच्छी और बेहतर सुविधाएं चाहिए तो उसके लिए उसे पहले अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि जिन गरीबों के पास पैसा ना हो उनका इलाज सही और अच्छे अस्पताल में होने की छूट होनी चाहिए। जिससे उनको भी बेहतर सुविधाएं और अच्छा इलाज मिल सके। हालांकि सरकार की तरफ से कई बड़े अस्पतालों में गरीबों के लिए छूट दी जाती है, लेकिन जानकारी के अभाव में लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता। जिसके चलते अस्पताल प्रशासन अपनी मनमानी करते हैं। आज हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे ही मामले के बारे में बताने जा रहे हैं जहां अस्पताल प्रशासन ने बिल क्लीयरेंस ना होने पर तीरंदाजी की एक नेशनल खिलाड़ी की डेड बॉडी को उसके परिवार को देने से मना कर दिया।
हालांकि बाद में लाख मिन्नतों व लिखित में लेने के बाद अस्पताल प्रशासन को मृतका की बहन पर तरस आया और उसे बॉडी सौंप दी गई। बता दें कि इसके लिए मृतका की बहन ने अपने आप तक को गिरवी रखने की बात कह डाली थी। जिसके बाद भी अस्पताल प्रशासन का दिल नहीं पिघला। काफी जद्दोजहद और लिखित में लेने के बाद ही नेशनल खिलाड़ी की बॉडी सौंपी गई।
जानकारी के अनुसार कोरबा के मुड़ापार की रहने वाली शांति धांधी तीरंदाजी की नेशनल खिलाड़ी थी। 18 साल की उम्र में ही उसका लीवर फेल हो गया था। जिसके चलते उसे छत्तीसगढ़ के एसईसीएल कोरबा अस्पताल में एडमिट करवाया गया था। कुछ समय बाद उसे 14 मार्च को अपोलो हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया था। जिसके बाद इलाज के दौरान बीते शनिवार को अपोलो में उसकी मौत हो गई।
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इस दौरान उसके साथ उसकी बहन सावित्री धांधी और पड़ोस के भाई कैलाश साहू आए थे। जब उनको मौत की सूचना मिली तो उन्होंने बॉडी ले जाने की बात कही। इस पर अस्पताल प्रशासन ने पहले बिल का हिसाब करने को कहा। जब परिवार वालों ने बिल पूछा तो उन्हें 2 लाख 19 हजार का बिल बताया गया, जो उनके लिए जमा कर पाना काफी मुश्किल था। ऐसे में जब उन्होंने अस्पताल प्रशासन के सामने अपनी परेशानी बताई तो प्रशासन ने बिना बिल क्लीयरेंस के लाश देने से मना कर दिया और बॉडी को मरच्यूरी में रखवा दिया।
मृतका के परिवार वालों के मुताबिक इस दौरान अपोलो अस्पताल प्रशासन ने पैसे के बिना बॉडी देने से साफ तौर पर मना कर दिया था। जिसके बाद हर तरह से तुरंत पैसे जमा करने में नाकाम रही उसकी बहन डॉक्टरों के सामने रोती बिलखती रही। डॉक्टरों से गुहार लगाती रही, लेकिन अस्पताल प्रशासन का दिल नहीं पसीजा। जिसके बाद उसने खुद को गिरवी रखने की बात भी कही, लेकिन उन्होंने एक ना सुनी। किसी तरह से बड़ी मुश्किल से लोगों के समझाने पर 11 घंटे बाद बकाया राशि जमा करने की बात लिखित में लेकर परिवार वालों को बॉडी सौंपी गई। इस दौरान मृतका के जानकारों ने अस्पताल प्रशासन पर भी कई आरोप लगाए।
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उनके मुताबिक बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में लीवर फेल्योर का इलाज नहीं था, लेकिन फिर भी अस्पताल ने शांति को एडमिट किए रखा। साथ ही कुछ पूछने पर डॉक्टर साफ तरीके से बताना भी जरूरी नहीं समझ रहे थे कि मरीज की क्या पोजीशन है। वह ठीक हो भी पाएगी या नहीं। जब उन्होंने डॉक्टरों से उसे कहीं और ले जाने की बात कही तो उन्होंने इलाज चल रहा है यह कहकर बात को काट दिया।
आरोप है कि अस्पताल में इलाज ना होने पर भी मरीज को जबरन रख कर बिल बढ़ाया गया। हालांकि अब मृतका के परिवार वालों को उसकी बॉडी सौंप दी गई है। मृतका के पिता गंगा प्रसाद एसईसीएल से रिटायर्ड है। उनकी आठ बेटिया हैं। जिनमें से शांति सबसे छोटी थी।