कलावा या मोली को हिंदू धर्म के हर शुभ कार्यों में हाथों पर बांधा जाता है, पर क्या आप इसके बांधने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को जानते हैं यदि नहीं, तो आज हम आपको इस बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। जब आप कोई शुभ कार्य को संपन्न करते हैं तो प्रारंभ में आपके माथे पर तिलक किया जाता है और उसके बाद में आपके हाथ में मौली यानि कलावे को बांधा जाता है, पर इसको आखिर क्यों बांधा जाता है और इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण हैं इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको बता रहें हैं कलावे को बांधने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों तथा मान्यताओं के बारे में।
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सबसे पहले हम पौराणिक मान्यताओं की बात करें तो इसकी शुरूआत उस समय से हुई जब दानवराज राजा बलि ने भगवान विष्णु के अवतार वामन को सबकुछ दान कर दिया था और भगवान वामन ने कलावे को रक्षासूत्र के रूप में इसको राजा बलि के हाथों पर बांधा था। इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं में यह भी बताया जाता है कि भगवान इंद्र जब वृत्तासुर से लड़ने के लिए गए थे तब उनकी पत्नी शची ने इंद्र की भुजा पर यह रक्षासूत्र के रूप में बांधा था। इस युद्ध में भगवान इंद्र की विजय हुई थी। शास्त्रों में ऐसा भी बताया गया है कि मौली को कलाई पर बांधने से त्रिदेवों की कृपा मिलती है और व्यक्ति देवत्व के मार्ग पर अग्रसर होता है। मौली यानि कलावे को अविवाहित कन्याओं तथा पुरुषों के दायें हाथ पर तथा विवाहित स्त्रियों के बाएं हाथ पर बांधा जाता है। मंगलवार या शनिवार को आप पुरानी मौली को उतार कर नई मौली को अपने हाथ पर बांध सकते हैं। मौली बांधते समय धर्म में आस्था रखनी चाहिए। इस प्रकार से बांधी हुई मौली आपकी हर संकट से रक्षा करती है।