शिवरात्रि के बारे में सामान्यतः लोग यही जानते हैं कि इस दिन भगवान शिव की शादी देवी पार्वती से हुई थी, पर क्या आप जानते हैं कि यह विवाह किस स्थान पर संपन्न हुआ था, यदि नहीं तो आज हम आपको इस स्थान के बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। सबसे पहले हम आपको बता दें कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए जिस स्थान पर तप किया था, उस स्थान को “गौरी कुंड” कहा जाता है तथा जिस स्थान पर भगवान शिव का विवाह हुआ था वह स्थान “त्रियुगीनारायण” कहलाता है। इस स्थान पर आज भी वह अग्निकुंड है जहां पर भगवान शिव और देवी पार्वती ने सात फेरे लिए थे। इस अग्निकुंड में आज भी अग्नि जल रही है।
देवी पार्वती की साधना स्थली गौरीकुंड “त्रियुगीनारायण” की यात्रा के दौरान रास्ते में ही पड़ता है, इसलिए जो भक्त “त्रियुगीनारायण” की यात्रा पर जाते हैं, वह गौरी कुंड के दर्शन करते हुए ही आगे जाते हैं।
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“त्रियुगीनारायण” नामक इस स्थान पर तीन कुंड भी बने हुए हैं जिनको ब्रह्मा कुंड, विष्णु कुंड तथा रूद्र कुंड कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये तीनों कुंड भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र(शिव) ने ही बनाये थे और शिव के विवाह से पहले सभी देवी देवताओं ने इन कुंडों में स्नान किया था। इन कुंडों के बारे में ये भी मान्यता है कि यहां स्नान करने से संतानहीनता से मुक्ति मिलती है। “त्रियुगीनारायण” नामक यह स्थान उत्तराखंड के रूद्र प्रयाग जिले के सीमांत गांव में त्रियुगीनारायण मंदिर नाम से स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव के विवाह में भगवान विष्णु देवी पार्वती के भाई बने थे तथा इस विवाह में भगवान ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। इस स्थान को लेकर मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर भगवान वामन ने भी अवतार लिया था। आज भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं।