पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आज सभी लोग जानते हैं, पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इंदिरा जी ने एक “कालपत्र” को लालकिले में दफन कराया था और इसमें क्या लिखा था, आज हम आपको यहां बता रहें हैं। सबसे पहले तो हम आपको यह बता दें कि यह घटना 80 के दशक की है। उस समय इंदिरा जी भारत की प्रधानमंत्री थी और अपने राजनीतिक करियर की सर्वोच्च उपलब्धि को प्राप्त थी। इस समय इंदिरा के बेटे संजय उनकी राजनीतिक ताकत के तौर पर देखें जाते थे। देश की स्वंत्रता की 25वीं वर्षगांठ आने वाली थी, इसलिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसको विशेष बनाने के लिए योजना बनाना शुरू कर दिया था।
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इस योजना के अंतर्गत 15 अगस्त के दिन लाल किला परिसर में एक “टाइम कैप्सूल” दफन कराया जाना था और उसमें पिछले इतिहास से लेकर अब तक की उपलब्धियों के दस्तावेज होंगे ताकि एक लंबे समय बाद जब लोग इसको पढ़ेंगे तो वे भारत की उपलब्धियों को जान सकेंगे। इस टाइम कैप्सूल को 1 हजार वर्षों तक के लिए जमीन में दफनाने का समय तय किया गया था। इस टाइम कैप्सूल को तत्कालीन सरकार ने “कालपत्र” नाम दिया था। जब यह बात बाहर निकली तो राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग बात सुनाई पड़ने लगी। कुछ लोगों का कहना था कि कालपत्र में इंदिरा और नेहरू की उपलब्धियों की ही चर्चा है, तो कुछ लोग ऐसा नहीं मानते थे। कुछ का कहना था कि कालपत्र की सूचनाओं को सार्वजानिक किया जाए। इंदिरा गांधी ने इन सभी लोगों के विचारों को दरकिनार कर कालपत्र को लालकिला परिसर में दफन करा दिया।
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1977 में कांग्रेस सरकार केंद्र से बाहर हो गई और मोरारजी देसाई की अगुवाई में “जनता पार्टी” की सरकार बनी। इस सरकार ने चुनाव होने से पहले यह कह ही दिया था कि यदि हमारी सरकार बनीं तो हम लोग कालपत्र को लालकिले से बाहर निकालकर उसकी सूचनाओं को सार्वजनिक करेंगे। जनता पार्टी की सरकार बनते ही कुछ ही दिनों में कालपत्र को लालकिले से बाहर निकलवा लिया गया था और उसके भीतर के दस्तावेजों का अध्यन्न किया गया था, पर जनता पार्टी की ओर से कोई भी जानकारी बाहर सार्वजानिक नहीं की गई थी। 2012 में मानुषी पत्रिका की संपादक मधु किश्वर ने सूचना के आधार पर सरकार से इस कालपत्र की जानकारी लेने को कहा था, पर सरकार ने इस बारे में कुछ पता न होने की बात कह दी। इस प्रकार यह रहस्य हमेशा के लिए रहस्य ही बना रह गया कि आखिर उस कालपत्र में था क्या।