अपने पितरों को सम्मान देने और उनकी मुक्ति के लिए अनुष्ठान व पूजा आदि करते है जिसे हम पितृपक्ष के नाम से जानते हैं, देश के बड़े भाग में इसको श्राद्ध भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि, हिंदी मास के आश्विन की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक यानी पूरे पक्ष या 15 दिन तक श्राद्ध किए जाते हैं, इस समय श्राद्ध के दिन चल रहे हैं, हिंदू पौराणिक ग्रंथों में श्राद्ध को एक महापर्व या विशेष अनुष्ठान के नाम से जाना जाता है। दरअसल पूरे पखवाड़े तक चलने वाले इस आयोजन में श्रद्धालु अपने पूर्वजों को सम्मान के साथ याद कर उनसे आर्शीवाद पाते है जिससे घर में खुशहाली बना रहती है।
हिंदू धर्म ग्रंथों की माने तो इस पखवाड़े में हमारे पितृ या पूर्वज अपने स्वजनों से मिलने उनके पास आते हैं और और सेवा सत्कार से प्रसन्न हो विदा होते समय अपना आशीर्वाद दे कर जाते हैं, पितृपक्ष को लेकर समाज में कई भ्रांतियां भी हैं, लोग इन दिनों को अशुभ भी मानते हैं, लिहाजा इन 14 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य शादी-विवाह गृह प्रवेश से परहेज करते हैं। इस दौरान कोई नया कार्य भी शुरू नहीं किया जाता है, यहांतक कि इन दिनों गृहस्थ को त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करने की सलाह दी जाती है। मांस मछली मदिरा तो सर्वत्र वर्जित किया जाता है।
धर्म ग्रंथों एवं विद्वानों की माने तो पितृपक्ष के 14 दिन केवल पितरों को समर्पित होते हैं। इस दौरान सभी का कार्य उद्देष्य पितरों के तर्पण और उनको श्रद्धा से याद करने और उनको सम्मान देने का होना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई इस दौरान कुछ नया कार्य करना चाहते हैं या नए कपड़े, घर आदि लेने की सोचते हैं तो पितरों की पूजा व सम्मान से ध्यान हट जाता है और पितर नाराज़ हो सकते हैं।
जानकार ये भी कहते हैं कि पितृपक्ष के दौरान बाजार से खरीदी हुई हर वस्तु पितरों को समर्पित होती हैं, ऐसे में नई खरीदी गई वस्तुओं का उपयोग करना अनुचित माना जाता है, इसके पीछे तर्क ये है कि सभी वस्तुओं में आत्माओं का अंश होता है. ऐसा भी माना जाता है कि अगर इन 14 दिनों में कोई नई वस्तु ख़रीदी जाती है तो उससे पितरों को तकलीफ होती है उन्हे अपना अपमान महसूस होती है जिससे वो नाराज भू हो सकते हैं। दरअसल इसके पीछे तर्क ये है कि पितृपक्ष खुशी का पर्व नहीं है बल्कि एक तरह से दुख व्यक्त करने का समय होता है।
एक दूसरा मत ये भी कहता है कि शास्त्रों में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान नई वस्तुएं नहीं खरीदी जा सकती है। कुछ जानकार तो ये भी मानते हैं कि पितृपक्ष के 14 दिन अशुभ नहीं होते है। दरअसल गणेश चतुर्थी और नवरात्रि के बीच की जो अवधि है उसी समया में पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष होता है, तो ये अशुभ कैसे माने जा सकते हैं ? वैसे तो हिन्दू धर्म में भी ये मान्यता है कि शुभ काम की शुरुआत गणेश पूजन का साथ की जाती है, लिहाजा श्राद्ध से पहले ही गणेश जी की पूजा होती है जो गणेश चतुर्थी के रूप में होती है। अगर इस नज़रिए से देखें तो पितृपक्ष के 14 दिन अशुभ नहीं माने जा सकते हैं।