फरवरी के इस महीने में महाराष्ट्र टूरिज्म नागपुर महोत्सव का आयोजन कर रहा है। इस महोत्सव से जरिये सभी लोग विदर्भ के टूरिस्ट स्पॉट्स से परिचित होंगे और यही इस महोत्सव का उद्देश्य भी है। आज हम आपको बता रहे हैं विदर्भ के प्रसिद्ध संत “गजानन महाराज” के समाधि स्थल “आनंद सागर” के बारे में। कहा जाता है कि गजानन महाराज के पास दिव्य शक्तियां थीं। इनके एक इशारे पर सूखे कुओं में पानी भर जाता था और इनकी आंखों के तेज से आग लग जाती थी।
कौन थे गजानन महाराज –
गजानन महाराज के जन्म स्थान और वास्तविक नाम के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती है। पहली बार गजानन महाराज को शेगांव में 23 फरवरी 1878 को देखा गया था। उस समय वे ‘गं गं गणात बूते’ का जप करते हुए एक पत्तल में चावल खा रहे थे। इसलिए उस समय से ही उनका नाम गजानन महाराज पड़ गया था। गजानन महाराज को भगवान दत्तात्रेय के तीसरे और अंतिम अवतार के रूप में भी पूजा जाता है। अपनी मृत्यु से पहले ही गजानन महाराज ने अपने भक्तों को इसके बारे में बता दिया था।
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गजानन महाराज ने 8 सितम्बर 1910 में बुलढाणा जिले के शेगांव में ही समाधि ली। इस स्थान पर आज उनका एक विशाल मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में उनका चिमटा, चरण पादुका और हनुमान जी की प्राचीन मूर्ति मौजूद है। गजानन महाराज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये दूसरे लोगों का मन पढ़ लेते थे। इनके आशीष से सूखे कुओं में भी पानी भर जाता था। कभी-कभी इनके तेज से सूखी घास में आग भी लग जाती थी।
कैसा है गजानन महाराज का समाधि स्थल –
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बुलढाणा जिले में यह मंदिर स्थित है जो कि विदर्भ में ही पड़ता है। कहा जाता है कि गजानन महाराज का यह समाधि स्थल किसी स्वर्ग से कम नहीं है। असल में यह इलाका पूरे साल पानी की कमी से जूझता रहता है, पर गजानन महाराज का समाधि स्थल “आनंद सागर” में पानी की कोई किल्लत नहीं है। इसीलिए इस स्थल को लोग “विदर्भ का स्वर्ग” कहते हैं। यह आनंद सागर उद्यान मुख्य मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह 325 एकड़ के क्षेत्र में फैला है और बहुत ही मनोरम स्थल है। इसके 50 एकड़ के क्षेत्र में एक तालाब बनाया गया है और इस तालाब के मध्य में एक टापू पर ध्यान केंद्र बनाया गया है। यहां प्रतिदिन 25 से 30 हजार लोग मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।