एक आदमी जिसने कायम की मानवता की बड़ी मिसाल

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आदिकाल से ही हमारे देश में मानवता को सर्वोपरि माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि मानव धर्म बाकी हर धर्म से ऊंचा है। ऐसी कई प्राचीन कहानियां हैं जिनमे कई समृद्ध लोगों ने अपनी कुल संपत्ति का एक भाग गरीब और जरुरतमंदों को दान कर दिया। आज भी कई लोग इस प्रकार से परोपकार कर गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करते देखे जा सकते हैं।

आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं जिसने मानव सेवा के भाव से प्रेरित होकर अपना घर तक बेच डाला और अब वह गरीब, जरूरतमंद और बीमार लोगों के लिए लंगर चला कर भोजन सेवा का कार्य करते हैं।

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जरूरतमंद लोगों के लिए ऐसा सेवा का कार्य करने वाले शख्स का नाम है जगदीश लाल आहूजा। जगदीश फ़िलहाल 80 साल के हैं पर गरीब लोगों की सेवा का जज़्बा आज भी उनमें ज़िन्दा है। जगदीश पिछले 15 सालों से पीजीआई चंडीगढ़ और सेक्टर-32 के अस्पताल के बाहर मरीजों और उनके साथ आये लोगों को फ्री में खाना खिला रहे हैं। 80 साल के जगदीश लाल अहूजा लंगर लगा कर लोगों का पेट भरते हैं। इनके लंगर का नाम है “बाबा का लंगर”।

सेवा के लिए बेच दी अपनी प्रॉपर्टी –
आज लोग ज़मीन-जायदाद के लिए दूसरों का क़त्ल तक कर देते हैं लेकिन जगदीश लाल अहूजा ने गरीबों का पेट भरने के लिए अपनी प्रॉपर्टी तक बेच डाली। हाल ही में उन्होनें अपना एक घर 1 करोड़ 60 लाख रुपए में बेच दिया। वे कहते हैं उनकी जिंदगी में ऐसे कई मौके आए जब मरीजों को फ्री खाना बांटने में आर्थिक तंगी सामने आ गई, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे। हर बार इसके लिए पैसा जुटाने के लिए उन्होनें अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। अभी तक अहूजा शहर में अलग-अलग 6 प्रॉपर्टी इस काम के लिए बेच चुके हैं। इस बार इन्होंने इसके लिए अपनी 7वीं प्रॉपर्टी को बेचा है, ताकि लंगर बंद न हो। अपनी 7वीं प्रॉपर्टी बेचने के बाद जगदीश लाल अहूजा कहते हैं कि अब ये लंगर नहीं रुकेगा। जब तक मैं जिंदा हूं बाबा का लंगर यूं ही चलता रहेगा।

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कैसे शुरू हुआ यह सेवा भाव का कार्य –
जगदीश बताते हैं कि आज से 35 साल पहले जब उनके बड़े बेटे का आठवां जन्मदिन था, तो उन्होंने अपनी दुकान के आगे भूखे बच्चों को खाना खिलाने का काम शुरू किया। तब से शुरू हुआ ये सिलसिला लगातार आगे बढ़ता गया। एक दिन वो पीजीआई के आगे से जा रहे थे, तो एक आदमी कुछ लोगों को खाना खिला रहा था। उस आदमी को देख कर उनके मन में भी वहां मौजूद जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने की बात मन में आई। इसके बाद जगदीश ने 21 जनवरी 2000 से यहां मरीजों के लिए लंगर लगाना शुरू कर दिया। अब प्रतिदिन सैकडों लोग यहां खाना खाते हैं।

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shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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