हमारे वैदिक ग्रंथों के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता हैं। और विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव का जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। विवाह का शाब्दिक अर्थ होता है – अपने (उत्तरदायित्व का) वहन करना। शादी के इस अटूट बंधन को बनाये ऱखने के लिये हमारे धर्म में कई तरह की रस्में निभायी जाती है। मंगलसूत्र का डालना, सिंदूर भरना, और सात फेरे के साथ पूरे जन्म के लिये एक दूसरे के साथ बंध जाना। पर आपने इस बात पर कभी गौर किया है कि विवाह की रस्में शुरु होने से पहले वधू, वर के दाहिनें ओर बैठती है लेकिन तीसरे या चौथे फेरो के बाद वधू, वर के बायीं ओर आकर बैठ जाती है। आखिर इसका क्या कारण है। कि फेरो के बाद वधू को हमेशा वर के बायीं ओर ही क्यो बैठाया जाता हैं ? आइए जानते है इसके पीछे छिपे कारण के बारे में।
हिंदू विवाह में हर धार्मिक कार्यों के समय चाहे शादी के समय की बात हो ,या कोई बड़ा धार्मिक अनुष्ठान हर पत्नी अपने पति के बायीं ओर ही बैठती है। इसी कारण पत्नी को ‘वामांगी’ भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार के पत्नी का स्थान पति के बायीं ओर ही होता है, क्योंकि शरीर और ज्योतिष, दोनों शास्त्रों में पुरुष के दाएं भाग को और स्त्री के बाएं भाग को शुभ और पवित्र माना गया है।
हस्तरेखा शास्त्र केअनुसार महिलाओं के बाये और पुरुष के दायें हाथ को ही देखा जाता है। शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा मस्तिष्क की रचनात्मकता और दायां हिस्सा उसके कर्म का प्रतीक होता है। मानव स्वभाव के अनुसार स्त्री का स्वभाव प्रेम और ममता से पूर्ण होता है और उसके भीतर रचनात्मकता होती है, इसीलिए स्त्री का बाईं ओर होना प्रेम और रचनात्मकता को दर्शाता है। वहीं पुरुष हमेशा दाईं ओर होता है क्योंकि ये इस बात का प्रमाण होता है कि वो शूरवीर और दृढ होता है। पूजापाठ या शुभ कर्म में वह दृढ़ता और रचनात्मकता का मेल जब होता है तो उसमें सफलता मिलना निश्चित है।
हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी लक्ष्मी का स्थान हमेशा श्री विष्णु के बायीं ओर होने का उल्लेख किया गया हैं। यही कारण हैं कि हिंदूओं विवाह में फेरो के बाद लड़की का स्थान बायीं ओर होता हैं। ये परंमरा हमारे हिदूं समाज में ही नही, बल्कि दूसरे धर्मं के लोगों की संस्कृति में देखी जा सकती है। भले ही उनके रीति रीवाज अलग हो, पर पति पत्नि का बंधन एक ही रीति के अनुसार बंधता है। क्रिश्चयन विवाह में भी पुरुष से सात वचन लिये जाते है और वधु भी हमेशा वर के बायी ओर रहती है। क्योकि वर को रक्षक और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।