इस्लाम में आखिर क्यों है चार पत्नियां रखने की आजादी, जानें यहां

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वैसे हमारे देश के संविधान में एक ही पत्नी रखने का कानून है, पर इस्लाम में चार पत्नी रखने की आजादी के पीछे आखिर क्या कारण है। आज हम आपको इस बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। बात शुरू करते हैं ट्रिपल तलाक से। हाल ही में ट्रिपल तलाक को अपने देश में बैन किया गया। इसके बैन होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को अचानक मिलने वाले तलाक के डर से आजादी मिली और इसके बाद मुस्लिम लोगों के लिए एक ही पत्नी रखने का कानून पारित किया गया,

जबकि इससे पहले प्रत्येक मुस्लिम चार पत्नी रखने का हक रखता था जैसे की अधिक पत्नियां रखना कोई शान की बात हो। बहुविवाह के कारण घर में आपसी कलह तथा झगड़ों का होना आम बात हो गई थी, पर अब मुस्लिम लोगों के लिए बहुविवाह समाप्त होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को इस प्रकार की सभी समस्याओं से छुटकारा मिला। आज भी कई बार मुस्लिम लोग इस्लाम की दुहाई देते हुए यह कहते मिल जाते हैं कि उनके यहां चार पत्नियां रखना जायज बताया गया है। सवाल यह उठता है कि यदि ऐसा है तो इसके पीछे आखिर क्या तर्क है।

इस्लामिक जानकार बताते हैं नाजायज –

इस्लामिक जानकार बताते हैं नाजायजImage source:

वर्तमान समय में चार पत्नियां रखने की बात को इस्लामिक जानकार सही नहीं मानते हैं। उनके अनुसार इस्लाम में चार पत्नियां रखने के पीछे अपना एक तर्क था जो आज के समय पर लागू नहीं होता है। इस्लामिक विद्वान मानते हैं कि “जब यह नियम लागू किया गया था। तो लोग कबीलों में रहते थे और उस समय एक कबीले के लोग दूसरे कबीले से लड़ाई करते रहते हैं। इस प्रकार की लड़ाई में ज्यादातर पुरुषों की मौत हो जाती थी। पुरुष के मर जाने के बाद उसकी पत्नी विधवा तथा बच्चे यतीम हो जाते थे। इन महिलाओं तथा बच्चों को सहारा देने के लिए एक व्यक्ति बहुविवाह करता था।

उस समय एक पुरुष को चार पत्नियां रखने की आजादी तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रख कर दी गई थी। आज की परिस्थितियां उस समय जैसी नहीं है अतः आज के समय में चार पत्नियां रखने की बात नाजायज साबित होती है।” इसके अलावा इस्लामिल विद्वान इस बारे में एक और बात कहते हैं कि “यदि वर्तमान समय में एक पुरुष चार पत्नियां रखता है तो उसको सभी पत्नियों को सामान रूप से उनका हक, इज्जत तथा प्यार देना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इस प्रकार का बहुविवाह हराम माना जाता है।”

वर्तमान समय में इन बातों को समझने की आवश्यकता है। कुछ इस्लामिक लोग “धर्म की स्वतंत्रता” के नाम पर संविधान की धारा 25 का हवाला देते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को यह इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि जब कोई पुरुष अपनी एक पत्नी के साथ ही हिंसा जैसे कुकृत्य करता है तो उसको क्या 3 अन्य महिलाओं के जीवन से खेलने का हक है ?

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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