यहां के लोग सालों से जमीन से निकल रही गैस से बना रहें हैं भोजन

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एक और सरकार महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत गैस बांट रही है वहीं दूसरी और अपने देश के एक स्थान पर जमीन से गैस निकल रही है और सालों से लोग उसी से खाना बना रहे हैं। आज हम आपको इसी स्थान के बारे में जानकारी दे रहें हैं। जहां तक बात सरकार की है तो सरकार का प्रयास सरहानीय है। सरकार चाहती है कि महिलाओं को लकड़ियों को जलाकर भोजन बनाने की कष्ट साध्य प्रक्रिया से छुटकारा मिले इसलिए वह उज्जवला योजना के तहत महिलाओं को गैस सिलेंडर तथा चूल्हा बांट रही है। लेकिन अपने देश में एक स्थान ऐसा भी है। जहां जमीन से खुद ब खुद गैस का रिसाव हो रहा है और एक परिवार पिछले तीन वर्ष से इस जमीनी गैस पर ही भोजन पका रहा है। जमीनी गैस की वजह से इस परिवार को ईंधन के लिए एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ता है।

भोजनImage source:

आपको बता दें कि यह जमीनी गैस मध्य प्रदेश के दमोह के अंतर्गत आने वाले मादो गांव के एक परिवार के बोरवेल से निकल रही है। यह परिवार बोरवेल से निकली इस गैस पर ही पिछले 3 वर्ष से अपना भोजन पका रहा है। अतः इस परिवार को सिलेंडर या ईंधन के लिए एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। इस गांव के ही निवासी दुर्गा सिंह लोधी ने इस बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने खेत में कुछ वर्ष पहले बोरवेल कराया था। कुछ समय तक तो बोरवेल ने पानी दिया पर उसके बाद वहां से पानी आना बंद हो गया। एक दिन जब उनका लड़का खेत पर पंहुचा तो उसको बोरवेल से कुछ आवाज सी सुनाई पड़ी। उसने देखा तो उसको कुछ अजीब सी गंध आई।

बाद में पता लगा कि यह एलपीजी गैस की गंध है। इसके बाद दुर्गा सिंह लोधी के छोटे बेटे ने उस गड्ढे को बंद कर एक छोटे से सुराग में पाइप की नाली लगा डाली। यह लाइन उसने करीब 15 फिट दूर तक बिछाई अतः नली के दूसरे सिरे पर एक चूल्हा लगा दिया। तब से लेकर आज तक दुर्गा सिंह लोधी का परिवार उस गैस से ही अपना भोजन बनाता आ रहा है। इस परिवार ने गैस को बद तथा चालू करने के लिए बटन लगा रखा है ताकि अनावश्यक गैस बर्बाद न हो। अब यह परिवार ईंधन या सिलेंडर नहीं खरीदता है बल्कि इसी जमीनी गैस के चूल्हे से अपना भोजन बनाता है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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