क्या आप जानना चाहते हैं कि आपकी संतान का व्यक्तित्व कैसा होगा, वह किस प्रकार की प्रवृति की होगी, तो आपको यह खबर पढ़नी ही चाहिए। मान्यता है कि हमारे इस जन्म के भाई बहन या माता पिता इत्यादि भी पूर्व जन्म के संस्कार तथा कर्मों के कारण ही मिलते हैं। इन लोगों से हमको इस जन्म में कुछ लेना होता है या कुछ देना। कुल मिलाकर यह मान्यता कर्म बंधन के नियम को प्रतिपादित करती है। इसी प्रकार से यह भी माना जाता है कि इस जन्म में जो भी बच्चा व्यक्ति की सन्तान के रूप में जन्म लेता है। वह उसके पूर्वजन्म का ही कोई भाई बंधु अथवा परिजन होता है। इस संबंध में सनातन धर्म के ग्रंथ बहुत साफ साफ बताते हैं। इन ग्रंथों में कुछ बंधन कारक कर्मों के बारे में लिखा हुआ है। जिनमें बंध कर ही आत्मा एक से दूसरे जन्म में अपने ही किसी परिजनम के घर जन्म लेती है। आइये विस्तार से जानते हैं इन कर्म बंधनों के बारे में।
1 – ऋणानुबन्ध
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यदि पूर्व जन्म में आपने किसी से कोई कर्ज लिया है तो जिससे लिया है वह आपकी संतान के रूप में जन्म लेता तथा अपने कर्ज को पूरा कराने तक आपका धन व्यय करवाता है।
2 – शत्रु पुत्र
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पिछले जन्म का कोई दुश्मन यदि आपसे अपना बदला नहीं ले पाया होता है तो वह भी आपकी संतान के रूप में जन्म लेता है तथा आपको जीवन भर परेशान करता है।
3 – उदासीन संतान
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इस प्रकार का बच्चा न तो अपने माता पिता को कोई सुख देता है और न ही कोई दुःख। विवाह होने पर ये बच्चे अपने माता पिता से अलग हो जाते हैं।
4 – सेवक संतान
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यदि पूर्व जन्म में आपने बिना किसी स्वार्थ के किसी की सेवा की है तो इस जन्म में वह आपकी संतान के रूप में जन्म लेता है तथा आपकी सेवा कर अपना कर्म कर्जा उतारता है।
इस प्रकार से कर्म के ऊपर ही निर्भर करता है कि आपकी आने वाली संतान कैसी होती है। यही कारण है कि अपने अगले जीवन को सुखी बनाने के लिए अच्छे कर्म करने का संदेश हर धर्म ग्रंथ देता है।