गुरु गोबिंद सिंह के बारे में तो आप सब जानते ही हैं। आज उनके दिए उपदेशों तथा उनके द्वारा किये कार्यों के बारे में हम आपको बता रहें हैं। गुरु गोबिंद सिंह ने न सिर्फ धर्म बल्कि कर्म क्षेत्र में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। उन्होंने लोगों को धर्म के साथ साथ अपने सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करने की शिक्षा दी। आइये हम आपको उनके धार्मिक तथा कार्मिक कार्यों और उपदेशों के बेरे में विस्तार से बताते हैं।
1 – धार्मिक राज्य का उद्घोष
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गुरु जी का बचपन से ही एक निश्चित लक्ष्य रहा था। धर्म का विकास और उसकी स्थापना। यही कारण था कि महज 9 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीरी पंडितों के ऊपर हो रहें अत्याचार को खत्म करने के लिए प्रेरित किया था। इस कार्य को करते हुए जब गोबिंद सिंह जी के पिता की मृत्यु हो गई तो गोबिंद सिंह जी खुद गुरु गद्दी पर बैठे। उस समय उनके आगे बहुत बड़ी बड़ी चुनौतियां थी। उस समय ओरंगजेब से सारा भारत त्रस्त था। लोगों में भी उत्साह व साहस की खासी कमी थी, ऐसे में गुरु जी ने उद्घोष किया था कि उनका एकमात्र उद्देश्य धर्म की स्थापना तथा उसका विकास करना रहेगा।
2 – धर्म के लिए किया साहित्य सृजन
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धर्म की स्थापना हेतु व लोगों में धार्मिक चेतना को जगाने के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने साहित्य का सृजन कराया। आपको बता दें कि गुरु जी ने “पाऊंटा साहिब” नामक नगर बसाया था और वहां अपने दरबार में बहुत से कवि तथा लेखकों को आमंत्रित कर उनसे “सत साहित्य” की रचना कराई थी। इस साहित्य का केंद्र धर्म तथा निराकार परमात्मा था। गुरु जी ने इस साहित्य को फारसी, वृज, पंजाबी आदि भाषाओँ में सृजित कराया था।
3 – एक परमात्मा पर विश्वास करें
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गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक मात्र परमात्मा पर विश्वास करने को ही शक्ति का साधन बताया है। उन्होंने कहा कि केवल परमात्मा पर विश्वास ही व्यक्ति को शक्ति संपन्न तथा निर्भय बना सकता है। उनका विश्वास था कि यदि कोई व्यक्ति परमात्मा पर पूर्ण विश्वास करता है तो बड़े से बड़ा दुश्मन भी उसका कुछ नहीं कर सकता है। गुरु जी ने अपने एक मात्र विजय पत्र के रूप में “जफरनामा” नामक रचना लिखी, जिसकी एक प्रति ओरंगजेब को भेजी गई थी। इस ग्रंथ का सार यह था कि ईश्वर पर किया गया विश्वास ही मानव की शक्ति होती है।
4 – खालसा पंथ का किया निर्माण
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गुरु जी ने खालसा पंथ का निर्माण किया। दरअसल गुरु गोबिंद सिंह चाहते थे कि मानव सत्य तथा धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हों। यही कारण था कि उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए खालसा पंथ को निर्मित किया था। आत्म शुद्धता तथा आत्मबल के लिए उन्होंने खालसा बने लोगों को नया परिवेश तथा खालसा नाम दिया जिसका अर्थ होता है मन, वचन तथा कर्म से शुद्ध व्यक्ति। आगे चलकर यह खालसा पंथ ही सिक्खों की वीरता का प्रमाण भी बना।