उत्तराखंड को देवस्थान कहा जाता हैं क्योंकि यहां बहुत से पुरातन मंदिर हैं। आज हम आपको बता रहें हैं यहां के एक ऐसे मंदिर के बारे में, जहां रात्रि में गंधर्व और अप्सराएं नृत्य करते हैं। इस दैविक स्थान का नाम “चंद्रबदनी सिद्धपीठ” हैं। यह उत्तराखंड के सिद्धपीठो में से एक माना जाता हैं।
इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं हैं बल्कि यहां एक “श्री यंत्र” स्थापित हैं। शाम के समय जब पुजारी इस श्री यंत्र को कपड़े से ढकते हैं तो अपनी आंखें झुका कर ही ढकते हैं क्योंकि इस यंत्र की तेज रौशनी आंखों को खराब कर सकती हैं। यह दिव्य मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में हिंडोलाखाल विकास खंड नामक स्थान पर स्थित चित्रकूट पर्वत पर हैं।
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यहीं गिरा था देवी सती का बदन –
इस मंदिर के साथ देवी सती की पौराणिक कथा जुड़ी हैं। जिसके मुताबिक जब देवी सती के पिता राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से आहत हुई माता सत्ती ने यज्ञ अग्नि में कूद कर अपने देह त्याग दी थी।
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इस सब के बाद भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वहां जाकर दक्ष का सिर काट दिया तथा माता सती की लाश को लेकर जंगलों में घूमने लगे। भगवान विष्णु ने इस स्थिति को भाप कर अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। वह टुकड़े जिस जिस स्थान पर गिरे वहां शक्ति पीठ बन गए। उत्तराखंड के चित्रकूट पर्वत पर देवी सती का बदन गिरा था इसलिए इसको चंद्रबदनी सिद्धपीठ कहा जाता हैं।
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खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से भरपूर हैं यह स्थान –
इस मंदिर के आसपास का सारा क्षेत्र प्राकृतिक नजारों से भरपूर हैं। इस स्थान की यात्रा करने वाले लोग इसे कभी भूल नहीं पाते हैं। आप ऋषिकेश से देवप्रयाग होकर आसानी से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं। घने जंगलों तथा ऊंची पहाड़ियों से गुजरते रास्ते तीर्थ यात्री का मन मोह लेते हैं। इस मंदिर के पास ही यात्रियों के विश्राम की भी व्यवस्था हैं। नवरात्रों के दिनों में इस शक्तिपीठ पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।