क्या कभी आपने किसी मानव के श्राप से कोई गांव पूरा का पूरा उल्टा होता देखा या सुना है। अगर आपका जवाब न है तो चलिए आज हम आपको एक ऐसे ही गांव से परिचित करवाते है। यह गांव कहीं ओर नहीं बल्कि हमारे ही देश में है। जो एक सन्यासी के श्राप के कारण उल्टा हो गया था। आपको सुनने या पढ़ने में ये बात अजीब लग सकती है, पर यह सच है। इस सच के साबुत आज भी इस गांव में जिंदा हैं। जिन्हे आप देख सकते हैं। आज हम आपको बता रहें हैं आज से 5 हजार वर्ष पहले विकसित हुए “महानगर धोलावीरा” के बारे में। यह महानगर हड़प्पा सभ्यता का ही एक नगर था। वर्तमान में यह नगर गुजरात में कच्छ के रण में स्थित खडीर टापू पर है। धोलावीरा नगर से जुड़ी एक प्राचीन कथा है जो यह बताती है कि यह नगर आखिर किस प्रकार से बर्बाद हुआ था।
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कथा के अनुसार धोलावीरा में एक समय एक सन्यासी रहा करता था। उसके कई शिष्य थे। एक बार जब सन्यासी का शिष्य भिक्षा मांगने के लिए नगर में गया हुआ था तो उसको किसी ने भिक्षा नहीं दी। इस बात का पता जब सन्यासी को चला तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठा और उसने पुरे गांव को श्राप दे दिया। श्राप देते हुए सन्यासी ने कहा की “इस स्थान की किसी भी वस्तु का यदि लोगों ने उपयोग किया होगा तो उसका सर्वनाश हो जायेगा।”, इसके बाद में नगर में भूकंप और तूफ़ान आ गया। लोगों ने सन्यासी के स्थान की और जाना बंद कर डाला और धोलावीरा से निकल कर दूसरी जगह पर पहुंच गए। ये लोग अपने साथ धोलावीरा नगर की कोईं वस्तु नहीं लेकर गए थे क्योंकि हर वस्तु के साथ सन्यासी का श्राप जुड़ा हुआ था। यहां तक की वे धोलावीरा के पत्थर तक दूसरे स्थान पर नहीं ले गए। 1960 में इसकी खुदाई शुरू हुई थी तथा 1990 तक चली थी। इस स्थान पर एक 10 अक्षरों का साइन बोर्ड भी लगा है जिसकी भाषा आज तक पढ़ी नहीं गई है।