बहुत कम लोग जानते हैं कि आज से 500 वर्ष पहले हमारे इतिहास को संजोने के लिए एक अलग भाषा निर्मित की गई थी। आज वहीं भाषा लोगों को उनका पुरातन इतिहास बता रही है। हम आज आपको इस भाषा के बारे में ही बता रहें हैं। वर्तमान में पंडित पुरोहित लोग इस भाषा की सहायता से ही अपने पास आने वाले यजमानों का प्राचीन बता रहें हैं। आपको हम बता दें कि इस भाषा को “मोढ़ी लिपि” कहा जाता है। इस अलग भाषा को निर्मित करने की जरूरत के बारे में लोग बताते हैं कि उस पुराने समय में भारत पर विदेशी लोगों के आक्रमण होते रहते थे, इसलिए अपनी तथा व्यापार की सुरक्षा के लिए इस भाषा का निर्माण गया था।
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मोढ़ी लिपि मालवा में विकसित हुई थी। वर्तमान में यह भाषा तीर्थनगरी उज्जैन के पंडितों के काम में आ रही है। जैसा कि आप जानते ही है कि वर्तमान में श्राद्ध पक्ष चल रहा है। इस अवसर पर तीर्थनगरी उज्जैन में बहुत से लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध एवं तर्पण करने के लिए आते हैं। इसी अवसर पर अपने पास में आने वाले यजमानों के इतिहास को पंडित लोग मोढ़ी लिपि में खोज कर बताते हैं। मोढ़ी लिपि का उपयोग वंशावली लिखने में भी किया गया था।
आज भी बहुत से पुरोहितों के पास में इस भाषा में देश भर के लोगों की वंशावली मौजूद है। इस भाषा की खासियत यह है कि इसमें किसी भी अक्षर के बीच में अंतर (स्पेस) नहीं है। इस भाषा के शब्द घुमावदार बनाए गए हैं तथा इस भाषा में मारवाड़ी, संस्कृत, हिंदी, मालवी आदि भाषा के शब्दों का उपयोग किया जाता था। पं. अमर डब्बावाला इस लिपि के बारे में कहते हैं कि “उस समय देश पर बाहर से आक्रमण होते रहते थे, इसलिए सुरक्षा कारणों से इस भाषा का विकास किया गया। इस भाषा को पूर्वज सदियों से लिखते आएं हैं।” इस प्रकार से 500 वर्ष पुरानी मोढ़ी लिपि आज भी लोगों को उनकी वंशावली के बारे में बता रही है।