आंखों में नहीं है बचपन से रोशनी, फिर भी 50 हजार रूपए प्रति महीना कमाता है यह मैकेनिक

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कभी-कभी आदमी का हुनर उसको सामर्थ्यहीन होने के बाद भी बड़ा बना देता है। आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बता रहें हैं जिसकी आंखों में बचपन से रोशनी नहीं है, बाबजूद इसके वह प्रति महीने 50 हजार रूपए की आमदनी कर लेता है। इस व्यक्ति का नाम “नसीफ” है। नफीस ने आंखे न होते हुए भी उसने अपने हौसले से जीवन को एक नया मार्गदर्शन दिया है। नफीस झांसी के रहने वाले है और शहर के सैंयर गेट इलाके के पास सिलाई मशीन सुधारने की एक छोटी दुकान को चलाते हैं।

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नफीस अपने इस काम के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “हम लोग 5 भाई बहन थे। मेरे पिता जी पहले मशीन सुधारने का ही कार्य करते थे। मैं उनकी अंगुली पकड़ कर रोज दुकान में आता था। मशीनों की आवाज में ही मेरा सारा बचपन कटा है। मेरे अंदर अपने परिवार को आर्थिक रूप से सपोर्ट करने की बड़ी इच्छा थी। मैंने अपने पिता जी से ही मशीन सुधारने का कार्य सीखा है। अब मैं एक्सपर्ट हो चुका हूं और रोज करीब 2 हजार रूपए कमा लेता हूं।”, नफीस ने बताया कि बचपन से ही मेरी आंखों में रोशनी नहीं थी। पिता जी मुझे कई डॉक्टरों के पास में लेकर गए, पर कोई मेरा इलाज नहीं कर सका। सिलाई मशीन के कार्य ने नफीस को आत्म निर्भर बना दिया, साथ ही वह अपने परिवार के लिए एक बड़ा सहारा बन गया। नफीस का कहना है कि इस हुनर ने मेरा जीवन बदल दिया है। नफीस के इलाके के ही इरफान नफीस के बारे में कहते हैं कि “नफीस के ऊपर वाले की ऐसी मेहर है कि वे आंखे न होते हुए भी अपना काम अच्छे से कर लेते हैं।”, दूसरी ओर फराज का कहना है कि “नफीस को अन्य कारीगरों से ज्यादा तजुर्बा है और एक बार काम होने के बाद 6-7 महीने तक मशीन को दोबारा दिखाने की कोई जरूरत नहीं रहती है।” इस तरह नफीस ने न सिर्फ खुद का बल्कि अपने परिवार का जीवन भी संवारा है तथा समाज को संदेश दिया है कि यदि जीने का जज्बा हो तो आदमी सब कुछ कर सकता है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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