अपने दश में भगवान शिव के बहुत से मंदिर स्थापित हैं पर इनमें से कुछ मंदिर अपनी खास खूबियों या इतिहास के कारण समाज में काफी प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही शिवालय के यहां बता रहें हैं जिसको “पाकिस्तानी मंदिर” के नाम से जाना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी सरकारी कागजों में इस मंदिर का नाम “पाकिस्तानी मंदिर” ही है। यह मंदिर भारत में स्थित है और हिंदू मंदिर है, इसलिए लोगों में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि इसको पाकिस्तानी मंदिर क्यों कहा जाता है। असल में इसके पीछे एक रोचक घटना है और यह घटना उस समय की है जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ था। आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं उस घटना के बारे में ताकि आप इस पाकिस्तानी मंदिर के असल रहस्य को जान सकें।
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यह घटना उस समय की है जब भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ था। उस समय पाकिस्तान के लाहौर शहर से भारत में निहाल चंद और जमुनादास नामक दो हीरा व्यापारी बनारस में आये थे और यहीं बस गए थे। ये लोग पाकिस्तान से अपने साथ एक शिवलिंग लेकर आये थे और उसको एक दिन बनारस घाट पर ये लोग गंगा में प्रवाहित करने जा रहें थे। उस समय राजा गोपाल महाराज भी बूंदी स्टेट के शीतला घाट के पास में ही रहा करते थे और वे अक्सर घूमने के लिए शीतला घाट पर आ जाया करते थे।
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राजा गोपाल महाराज ने जब निहाल चंद और जमुनादास को शिवलिंग को विसर्जित करने जाते देखा, तो उनको रोक कर शिवलिंग के विसर्जन का कारण पूछा। राजा गोपाल महाराज को जब पता लगा कि यह शिवलिंग पाकिस्तान के लाहौर का है, तब उन्होंने शीतला घाट पर एक मंदिर बना कर उसमें इस शिवलिंग को स्थापित कराने का आदेश दिया। इस प्रकार से शीतला घाट के मंदिर में पाकिस्तान के लाहौर से आये इस शिवलिंग की स्थापना हो गई और इसलिए आज भी इस मंदिर को पाकिस्तानी मंदिर के नाम से जाना जाता है। आप कभी भी यदि बनारस जाएं तो इस पाकिस्तानी शिव मंदिर के दर्शन जरूर करें।