बृहदेश्वर मंदिर – दुनिया का सबसे ऊंचा और विशाल मंदिर, इसके रहस्य को आज तक वैज्ञानिक तक नहीं जान पाएं

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मंदिर आपने बहुत से देखें होंगे, पर आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहें हैं वह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। आज भी ग्रेनाइड से बने इस मंदिर के रहस्य को वैज्ञानिक नहीं जान पाएं हैं। आज हम आपको बता रहें हैं इस बृहदेश्वर मंदिर के बारे में। आपको सबसे पहले हम बता दें कि यह पूरा मंदिर ग्रेनाइड से बना है और ग्रेनाइड से पूरी तरह से निर्मित यह मंदिर अपने आप में एकमात्र मंदिर है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला, भव्यता और केंद्रीय गुंबद की वजह से भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आपको हम बता दें कि यूनेस्को ने भी इस मंदिर को विश्व धरोहर में शामिल किया हुआ है।

इस मंदिर का निर्माण चोल वंश के राजा “राजाराज चोल-I” ने कराया था। राजाराज चोल– I के शासनकाल 1010 एडी में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया था और 2010 में इस मंदिर ने अपने 1 हजार वर्ष पूरे कर लिए हैं।

vrihdeshwar temple called as the highest and the largest temple in the worldimage source:

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1,30,000 टन ग्रेनाइट पत्थर से किया गया है और इससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि जिस क्षेत्र में यह मंदिर बना है उस क्षेत्र में दूर-दूर तक कोई भी ग्रेनाइट पत्थर की खदान नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी मात्रा में उस समय के साधनहीन समय में ग्रेनाइट पत्थर आखिर किस स्थान से लाए गए होंगे। यह बात अभी तक रहस्य के पर्दे में ही है और इस बात को अभी तक आधुनिक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाएं हैं।

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इस मंदिर की बात करें तो इसकी ऊंचाई 216 फुट (66 मी.) है और संभवतः यह दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर है। इस मंदिर का कलश 80 टन का है और हैरानी वाली बात यह है कि कलश को मात्र एक पत्थर पर ही तराशा गया है। मंदिर के द्वार के पास में ही शिव गण नंदी की प्रतिमा भी स्थापित है जो 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है। मंदिर की खूबसूरत नक्काशी ग्रेनाइट पत्थर पर ही कराई गई है, जबकि ग्रेनाइट पत्थर पर नक्काशी का कार्य सबसे ज्यादा मेहनत भरा और पेचीदा होता है।

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आपको हम जानकारी दे दें कि रिजर्व बैंक ने 01 अप्रैल 1954 को 1 हजार रूपए मूल्य का जो नोट जारी किया था, उस पर इसी बृहदेश्वर मंदिर की आकृति बनी हुई थी। इस मंदिर के 1 हजार वर्ष पूरे होने पर मंदिर की याद में एक स्मारक सिक्का भारत सरकार की ओर से जारी किया गया था। इस सिक्के पर भी मंदिर की आकृति बनी हुई थी।

इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इसके गोपुरम की छाया कभी भी धरती पर नहीं पड़ती है। इस मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर की दीवारों पर भगवान शिव की आकृतियां अलग-अलग मुद्राओं में बनी हुई हैं। इस प्रकार से यह दुनिया का सबसे बड़ा और ऊंचा मंदिर है, जिसमें कई रहस्य भी हैं और ये रहस्य ही आज भी लोगों को मंदिर में आने का निमंत्रण देते हैं।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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