प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण को हम सभी जानते हैं, पर इन दोनों की मृत्यु के संबंध में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है इसलिए आज हम आपको यहां यह जानकारी दे रहें हैं ताकि आप भी इस रहस्य को जान सकें। प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण की मृत्यु का रहस्य हमें पद्म पुराण में मिलता है और आज हम आपको इस पुराण के हिसाब से ही प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण की मृत्यु का वर्णन कर रहें हैं।
मृत्यु एक अटल सत्य है इस बात को प्रभु श्रीराम अच्छे से जानते थे। एक दिन एक यमदूत संत के वेश में अयोध्या में श्रीराम के पास में आया। उसको देखकर श्रीराम समझ गए कि यह यमदूत है और पृथ्वी पर मेरे समय के खत्म होने की सूचना देने आया है। संत के वेश में आए यमदूत ने श्रीराम से अकेले में बात करने को कहा और यह शर्त रखी कि यदि हम लोगों की चर्चा के बीच में कोई आ गया, तो उसको मृत्यु दंड दिया जाए।
श्रीराम सहमत हो गए और उन्होंने यह बात लक्ष्मण जी से कह कर अपने कक्ष के बाहर उनको तैनात कर दिया। इसी बीच ऋषि दुर्वासा लक्ष्मण जी के पास पहुंच गए और श्रीराम से बात करने के लिए कहा पर लक्ष्मण जी ने उनको कुछ समय बाद में बात कराने के लिए कह दिया। इस पर ऋषि दुर्वासा बिगड़ गए और उन्होंने लक्ष्मण जी को चेतावनी दे दी कि यदि उनकी बात अभी श्रीराम से नहीं कराई गई, तो वे श्रीराम तथा अयोध्या दोनों को ही श्राप दे देंगे।
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लक्ष्मण जी अब धर्मसंकट में पड़ गए और उन्होंने फैसला किया वे खुद ही मृत्यु का वरण करेंगे और श्रीराम व अयोध्या को कुछ नहीं होने देंगे। इस कारण से लक्ष्मण जी यमदूत और श्रीराम की चर्चा के बीच कक्ष में चले गए। लक्ष्मण जी को देख कर श्रीराम हैरान रह गए, क्योंकि शर्त के मुताबिक अब लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड देना ही होगा।
श्रीराम ने शर्त के मुताबिक लक्ष्मण जी को मृत्युदंड से भी ज्यादा पीड़ादायक दंड दिया और वह था देश से निर्वासित होने का। लक्ष्मण जी अपना दंड भोगने के लिए राज्य से दूर चले गए, पर वे अधिक समय तक श्रीराम के बिना नहीं रह सकते थे, इसलिए उन्होंने सरयू नदी में जल समाधि ले ली और शेषनाग का रूप धारण कर विष्णु धाम प्रस्थान किया।
इस घटना के बाद में श्रीराम भी बहुत उदास रहने लगे और कुछ दिनों बाद उन्होंने भी जल समाधि लेने का फैसला कर लिया। श्रीराम ने अपना सारा राज्य अपने पुत्रों को दे दिया और खुद सरयू नदी ने जल समाधी ले ली तथा विष्णु रूप में प्रकट हो वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया। इस प्रकार से प्रभु श्रीराम तथा लक्ष्मण जी ने इस लोक से प्रस्थान किया था।