अपने देश में कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहां होने वाले सम्मलेन लोगों को हैरान कर देते हैं, आज हम आपको एक ऐसे ही सम्मलेन के बारे में जानकारी दे रहें हैं, जहां पर “दूल्हों का मेला” लगता है। दूल्हों के इस मेले में काफी योग्य लड़के शादी के लिए आते हैं और यह मेला 11 दिन लगातार लगता है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
सबसे पहले हम आपको यह बता दें कि दूल्हों का यह मेला बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में लगता है, इस मेले को “सौराठ सभा” के नाम से भी जाना जाता है। यह मेला काफी प्राचीन समय से लगता आया है और आज भी यह परंपरा जारी है। सौराठ सभा नामक यह मेला बिहार के मधुबनी जिले के सौराठ नामक स्थान पर 22 बीघा जमीन पर लगता है और इसको ‘सभागाछी’ के रूप में भी जाना जाता है। मैथिल ब्राह्मण दूल्हों का यह मेला प्रति वर्ष ज्येष्ठ या अषाढ़ महीने के महीने में भरता है।
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इस मेले में विवाह योग्य युवक अपने माता-पिता के साथ में आते हैं तथा यहीं लड़की के माता-पिता से बातचीत होती है तथा गोत्र आदि का विचार किया जाता है। यदि लड़की के माता-पिता को लड़का पसंद आ जाता है तो वह शादी का समय निश्चित कर लेते हैं। सौराठ के लोगों का कहना है कि आज से करीब 2 दशक पहले इस मेले में काफी भीड़ रहा करती थी, पर वर्तमान में पढ़े लिखे लड़के यहां आना पसंद नहीं करते हैं इसलिए यहां अब कम लोग ही दिखाई पड़ते हैं।
सौराठ महासभा में पंजीकार लोगों की भूमिका बहुत अहम होती है वही शादी के बाद रिश्ते को मान्यता देते हैं, इन पंजीकारों के पास में लड़के तथा लड़की की जन्म कुंडली होती है जिसमें वे पिछली 7 पीढ़ियों में यह देखते हैं कि पहले तो कोई विवाह संबंध नहीं हुआ है और उसके बाद में ही वे शादी को मान्यता देते हैं तथा शादी होती है। इस प्रकार लगातार 7 से 11 दिन तक यह मेला चलता है जिसमें दहेज मुक्त शादियां होती हैं।