आखिर सप्ताह में सात दिन ही क्यों होते हैं, जानिए इसके रोचक इतिहास को

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हम लोग कैलेंडर के हिसाब से ही सभी कार्यक्रम बनाते हैं, पर क्या आप जानते हैं कि सप्ताह में सात दिन ही क्यों होते हैं? इससे ज्यादा या कम क्यों नहीं, यदि आप नहीं जानते तो आज हम आपको यही बताने वाले हैं। आज के समय में कैलेंडर अपने आप बहुत महत्वपूर्ण वस्तु बन गया है और यदि आप भारत में रहते हैं तो यह आपके जीवन के लिए और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है, क्योंकि भारत में जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक कार्य में ग्रहों-नक्षत्रों की दशा को देखा जाता है तथा उनके अनुसार ही कार्यों को किया जाता है। इसके अलावा भारत में ज्योतिष शास्त्र का विकास प्राचीन समय से विस्तृत क्षेत्र में हुआ है और उसमें कैलेंडर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, तो कुल मिलाकर कैलेंडर आज के समय में बहुत ही उपयोगी वस्तु है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि सप्ताह में 7 दिन ही क्यों बनाए गए? यदि नहीं तो आइये आज हम आपको इस बारे में बताते हैं।

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तो इसलिए बनाए गए हैं सप्ताह में सात दिन –

असल में प्राचीन समय में सौर मंडल में सात ग्रहों को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता था और उन्हीं से प्रेरणा लेकर सप्ताह में सात दिन की अवधारणा बनाई गई है। यदि हम भारत के अलावा कई अन्य प्राचीन सभ्यताओं को भी लें, तो वहां भी हमें यह देखने को मिलता है की वे सभ्यताएं भी इन सात ग्रहों को महत्वपूर्ण मानती थी। बेबीलोन की सभ्यता में चन्द्रमा की कलाओं से प्रेरणा लेकर सात दिन की अवधारणा दी गई। बेबीलोन के निवासी चन्द्रमा की कलाओं के पूरा होने तक सात उत्सव मनाते थे और बाद में यही सात दिन के उत्सव सप्ताह के साथ दिनों में बदल गए। यहूदियों के समय में भी इसी कार्य को अपनाया गया तथा सात ग्रहों के आधार पर सात दिनों को बनाया गया था। इस प्रकार से सप्ताह में सात दिन की अवधारणा प्राचीन समय से ही अनेक सभ्यताओं ने दी थी जो की आज भी प्रचलित है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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