इस स्टूडेंट ने जेल में पढ़ाई कर IIT में पाई 453वीं रैंक

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देखा जाए तो जुर्म की दलदल में जो एक बार फंस जाता है वो कभी बाहर नहीं निकल पाता, पर बहुत कम लोग ऐसे भी हैं जो अपने हौंसले से इस दलदल से बाहर निकले हैं और आज भी कुछ लोग इससे बाहर आकर एक नई दुनिया बनाने के सपने बुनने में लगे हैं। आज हम आपके लिए एक ऐसे ही व्यक्ति की कहानी लेकर आए हैं जो कि जुर्म के दलदल से बाहर निकलने के लिए पूरे हौंसले के साथ आगे बढ़ रहा है। यह शख्स हैं पीयूष गोयल। पीयूष के पिता एक मर्डर के केस में अपनी 14 साल की सजा को काट रहे हैं और पीयूष भी उन्हीं के साथ जेल में रहता है। वह पिछले 2 साल से अपने सपनों को पूरा करने के लिए जेल के उस माहौल में तैयारी कर रहा था। जेल में पीयूष को 8×8 का कमरा मिला हुआ है जिसमें रात 11 बजे के बाद बिजली चली जाती है, परंतु पीयूष के हौंसले के सामने बिजली की समस्या बहुत छोटी थी।

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असल मे पीयूष का सपना इंजीनियर बनने का था और इसके लिए वह जेल में कड़ी मेहनत करता था। पीयूष का सपना रंग लाया और उसको पूरे भारत में 453वीं रैंक मिली। वहीं पीयूष के पिता के अच्छे आचरण के कारण उनको जेल प्रशासन ने बाहर जाने की परमीशन दे रखी थी। बाहर वो गार्ड की जॉब करते थे और शाम को जेल में आ जाते थे। अपनी सारी कमाई पीयूष के पिता अपने बेटे की पढ़ाई में खर्च कर देते थे। पीयूष को जेल के अफसरों तथा अन्य लोगों का भी बहुत सपोर्ट मिलता था। ये लोग अच्छे से पढ़ने के लिए पीयूष का उत्साहवर्धन करते रहते थे। आज पीयूष पास हो गया है। उसकी मेहनत रंग लाई है। अब वह यकीनन जीवन की नई शुरूआत करेगा।

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shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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