शश्श्श्श शब्द की मदद से सभी बच्चे बचपन में टॉयलेट किया करते थे। शायद ही कोई बच्चा होगा जिसे ये शब्द आज भी याद ना हो। श्श्श्श की आवाज से हम नींद में भी सू-सू कर लिया करते थे, लेकिन क्या कभी आपने गौर किया है कि इस शब्द में ऐसा क्या जादू जिसके चलते हम सू-सू कर दिया करते थे? नहीं पता तो चलिए आज हम आपके इस सवाल का जवाब देते हैं। आपको बता दे कि इस शब्द में कुछ ऐसा खास नहीं है बस इसको सुनने के बाद बच्चों को टॉयलेट करने की इच्छा हो जाती है।
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इस बात को साबित करने के लिए इवन पेवनल नाम की वैज्ञानक ने एक प्रयोग किया था। ये प्रयोग एक कुत्ते पर किया गया था। इवन कुत्ते को मीट देने से पहले घंटी बजाया करती थी। मीट का टुकड़ा लेते ही कुत्ते की लार टपकने लगती थी। ऐसा करते-करते एक समय ऐसा आया कि इवन के घंटी बजाते ही कुत्ते की लार खुद-ब-खुद टपकने लगती थी। इससे इवन ने ये समझा कि कुत्ता इस बात को समझ गया है कि उसे घंटी बजते ही मीट मिलेगा।
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अगर आपको ये उदाहरण समझ में ना आया हो तो आपको एक और उदाहरण देकर समझाते हैं। आप जब किसी को पेशाब करते देखते हैं तब आप को भी पेशाब करने की इच्छा होती है। इसके अलावा जब कोई नींद के मारे ऊबासी लेता है तब आपको भी नींद आने लगती है। तो निष्कर्ष ये निकलता है कि इस शब्द में ना कोई जादू है और ना ही कुछ और। बस यूं ही इस शब्द को सुनते ही बच्चों को पेशाब करने का मन करता है।