किन्नर ना तो पूर्ण रूप से पुरुष होते हैं और ना ही महिला। इसी कारण इनका अपना एक अलग संप्रदाय होता है। किन्नरों की शादी नहीं होती क्योंकि वह शारीरिक संबंध बनाने में सक्षम नहीं होते हैं। हमें अब तक इनके बारे में यही बात पता थी, लेकिन आज हम आपको इनके बारे में एक और बात बताने जा रहे है और वह यह कि किन्नरों की शादी होती है, वह भी दुल्हन बनते हैं, लेकिन सिर्फ एक रात के लिए। किन्नरों का दुल्हा और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान बनते हैं।
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मान्यता के अनुसार अर्जुन और उनकी पत्नी उलूपी से उत्पन्न संतान ही किन्नरों के भगवान थे। उलूपी एक नाग कन्या थी। इनके पुत्र का नाम इरावन था, लेकिन यह अरावन के नाम से जाने जाते हैं। महाभारत के समय युद्ध में पांडवों ने मां काली की पूजा करने के बाद एक राजकुमार की बलि चढ़ाने की बात की। इरावन बलि के लिए आगे आए और शर्त रखी कि शादी करने के बाद ही वह बलि पर चढ़ेंगे, किंतु उनसे कोई लड़की शादी करने को तैयार नहीं हुई क्योंकि हर किसी को पता था कि अगले ही दिन उनकी बलि चढ़ जाएगी।
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ऐसे में कृष्ण ने अरावन की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए मोहिनी का रूप लिया और उसके साथ शादी के बंधन में बंध गए। शादी के अगले ही दिन मोहिनी विधवा हो गई और उन्होंने एक विधवा से जुड़े सारे रीति रिवाज का पालन किया। आपको बता दें कि तमिलनाडु में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार हर साल अरवणी पर्व मनाया जाता है, जिसमें कई किन्नर आते हैं और अरावन की बरसी पर शोक भी मनाते हैं।
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अगर आप भी किन्नरों की इस शादी को देखना चाहते हैं तो तमिलनाडु के कूवनाम में आकर इस समारोह को देख सकते हैं, जहां पर कई किन्नर शादी मनाने आते हैं। यह समारोह 18 दिन का होता है। 17वें दिन यहां पर किन्नरों की शादी होती है और किन्नरों के पुरोहित मंगलसूत्र पहनाते हैं और इस तरह एक किन्नर की शादी हो जाती है।
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शादी के अगले ही दिन इरवन की मूर्ती को शहर में घुमाकर तोड़ दिया जाता है। जिसके बाद किन्नर अपना सारा सजना संवरना त्याग कर एक विधवा का जीवन व्यतीत करते हैं।