आज हमारे देश में कितने ऐसे हुनरबाज खिलाड़ी हैं जिनके हौंसले और हुनर को देख बड़े-बड़े धुरंधर भी हार मानने को मजबूर हो जाते हैं, पर पैसों और गरीबी के सामने इन लोगों का हुनर सिमट कर रह जाता है। ऐसा ही हमारे देश के लिये खेलने वाले एक हुनरबाज खिलाड़ी के साथ हुआ। जो आज अपनी गरीबी की परिस्थितियों से जूझते हुये सड़कों पर काम करके अपना पेट पालने को मजबूर है। यह वही हुनरबाज खिलाड़ी है, जिसने अपनी काबिलियत से देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाकर गौरवान्वित किया था पर आज वो खुद गलियों की खाक छान रहा है।
Image Source :http://img.punjabkesari.in/
आज हम जिस शख्स के बारे में आपको बता रहे हैं वो कभी ओलंपिक में कई बड़े कारनामे दिखाने के कारण देश की शान हुआ करता था पर आज की सरकार को इसकी काबलियत की कोई परवाह नहीं है। जिस वजह से यह शख्स आज गलियों, सड़कों पर खड़े होकर आर्टिफीशियल ज्वैलरी बेच अपना पेट पालने को मजबूर है। यहां हम बात कर रहे हैं राजकुमार की जिसने 2013 में साउथ कोरिया में हुए स्पेशल ओलंपिक के आइस स्केटिंग में भाग लेकर गोल्ड मेडल जीत भारत का नाम रोशन करने में अहम भूमिका निभायी थी। राजकुमार तिवारी दिल्ली के सदर बाज़ार में स्ट्रीट हॉकर हैं।
Image Source :http://img.punjabkesari.in/
देश की इस निखरती प्रतिभा को गरीबी नें रौंद कर रख दिया और हमारी सरकार ने इतनी जहमत भी नहीं उठाई कि इस निखरती प्रतिभा को डूबने से बचा सकें। भारत के लिये गोल्ड मेडल लाने वाला दमदार राजकुमार आज अपने पेट की आग बुझाने के लिये गलियों और सड़कों की खाक छान रहा है, लेकिन फिर भी उसके हौंसले प्रभावित नहीं हुए। आज भी उसके हौंसले बुलंद हैं और अपने सपने को बनाये रखने के लिए वह निकल पड़ा सड़कों और गलियों में आर्टिफीशियल ज्वैलरी को बेचने, जिससे वो अपने परिवार का पेट भर सके।
राजकुमार के ओलंपिक में आने का सफर-
Image Source :http://img.punjabkesari.in/
गोल्ड मेडलिस्ट राजकुमार काफी गरीब परिवार से है। उसके पिता की 300 रुपए की रोज की कमाई से घर चलता है। राजकुमार के विषय में बताया जाता है कि 4 साल की उम्र में छत से गिरने पर उसके सिर पर काफी गहरी चोट आई थी, जिससे हमेशा उसे परेशानी बनी रहती थी। इसके बाद पैरों में भी चोट आ जाने से काफी तकलीफें होने लगी। इन तकलीफों के बावजूद भी इतनी कम उम्र में ही उसकी रुचि बास्केटबॉल खेल के प्रति बन गई, पर गरीबी के चलते उसे हर तरफ निराशा ही हाथ लगती थी। इसी बीच एक दिन उसे ‘स्पेशल ओलंपिक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के बारे में किसी ने बताया जो उसके आगे बढ़ने का एक रास्ता था जिसके लिये उसने जी जान एक कर दी। पहले उसने अपने हाथों के द्वारा आइस स्केटिंग की प्रैक्टिस की, बाद में पैरों से भी स्केटिंग करना शुरू कर दिया
और फिर वो भारत की ओर से खेलने वाले पहले ऐसे खिलाड़ी बने जिसने इस स्केटिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर स्वर्ण पदक जीत कर भारत का नाम रोशन कर दिया।
लेकिन आज भारत का यह अनमोल हीरा आर्थिक तंगी के चलते खेल का मैदान छोड़कर सड़कों पर भटकने को मजबूर है जिसे हमारे देश की सरकार भी अनदेखा कर रही है। इस प्रकार के कई ऐसे हुनरबाज हमारे देश में हैं जिन्होंने अपने हुनर का प्रदर्शन कर भारत का नाम ऊंचा करने में सराहनीय योगदान दिया है, लेकिन सरकार ने इन जांबाज खिलाड़ियों की कोई सुधि नहीं ली।