जो लोग नौकरी पेशा होते हैं उन्हें सैलेरी के साथ सैलेरी स्लिप भी सौंपी जाती है। सैलेरी स्लिप बहुत काम की होती है और हर स्लिप को संभाल कर रखना चाहिए। इसकी मदद से आप कई चीजें पता लगा सकते हैं। ये आपके जॉब बदलने और इंक्रीमेट के वक्त काम आती है। जानें इससे
जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में-
बेसिक सैलेरी- आपकी बेसिक सैलेरी पूरी सैलेरी की 35 से 40 प्रतिशत होती है। आपको बेसिक के जितना टैक्स चुकाना पड़ता है क्योंकि ये 100 प्रतिशत टैक्सेबल होती है। आपकी सैलेरी स्लिप में सबसे ऊपर शामिल होती है।
एचआरए- एचआरए की फुलफॉर्म हाउस रेंट अलाउंस होता है। अगर एम्पलॉई मेट्रो सिटी में होता है तो उसे बेसिक सैलेरी का 50 प्रतिशत मिलता है। अगर टियर टू या थ्री में रहता है तो 40 प्रतिशत मिलता है। ऑफिस आने-जाने या उसके काम से बाहर जाने वाली रकम को कन्वेंस अलाउंस कहते हैं। ये आपकी जॉब प्रोफाइल के आधार पर तय होता है। इसे सैलेरी में जोड़ा होता है और 1600 तक की रकम टैक्स फ्री होती है।
लीव ट्रेवल अलाउंस- ये वाला अलाउंस फिक्स होता है। इसमें कंपनी साल की कुछ छुट्टियों का खर्चा देती है। ये सैलेरी का हिस्सा है और इस पर टैक्स बचाने के लिए आपको इनवॉइस पेश करना होता है। यात्रा के अलावा कोई खर्च इसमें शामिल नहीं होता है।
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मेडिकल अलाउंस- ये आपको मेडिकल कवर करने के तौर पर मिलता है। इसका इस्तेमाल जरूरत के समय कर सकते हैं और कई बार बिल दिखाकर उतने पैसे आपको मिल जाते हैं। मेडिकल में 15000 तक की रकम ही टैक्स फ्री होती है।
स्पेशल अलाउंस और परफॉर्मेंस बोनस- ये रकम एम्पलॉई के प्रोत्साहन के लिए दी जाती है। इसकी हर कंपनी में अलग पॉलिसी होती है और पूरा टैक्सेबल होता है।
ये होती है कटौती-
पीएफ- ये बेसिक सैलेरी का 12 प्रतिशत काटा जाता है। इतनी ही राशि कंपनी अपनी तरफ से आपके खाते में जमा करती है।
प्रोफेशनल टैक्स- यह टैक्स सिर्फ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, केरल, मेघालय, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार, त्रिपुरा और मध्यप्रदेश में लगया जाता है। यह आपकी पूरी सैलेरी पर लगता है।
इनकम टैक्स- ये टैक्स आपकी सैलेरी स्लिप में शामिल नहीं होता है। अगर आप टैक्स स्लैब के अंतर्गत आते हैं तो ये आपको भरना पड़ता है।