उज्जैन शहर मध्य प्रदेश में स्थित है और इस शहर को “चमत्कारों का शहर” भी कहा जाता है। क्षिप्रा नदी इस शहर की मुख्य और पुरातन नदी है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस नदी का काफी उल्लेख मिलता है। इस नदी के किनारे पर एक जल धारा सदियों से बह रही है जिसके उद्गम और संगम के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया है। यह जल धारा आज तक लोगों के लिए रहस्य ही बनी हुई है। लोग इस बारे में कई प्रकार के कयास लगाते देखे जाते हैं, पर सही में इस जल धारा का रहस्य आज तक किसी को नहीं मालूम चल सका है। बहुत से लोग इस जल धारा को “गुप्त गंगा” बताते हैं और बहुत से लोग इसको चमत्कारी नदी बताते हैं। आज हम इस जल धारा का रहस्य आपको बता रहे हैं, पर इसको समझने से पहले क्षिप्रा नदी के पुरातन काल को समझना जरूरी है। तो सबसे पहले जानिए क्षिप्रा नदी के बारे में प्राचीन ग्रन्थ क्या कहते हैं।
क्या लिखा है प्राचीन ग्रन्थों में –
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार क्षिप्रा नदी को प्राचीन नदी कहा गया है। इस मंडी के तट को “परशुराम” का जन्मस्थान बताया गया है, वहीं अन्य ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि श्रीराम ने अपने पिता का तर्पण संस्कार इसी नदी के तट पर किया था। ज्योर्तिंलिंग महाकालेश्वर, शक्तिपीठ हरसिद्धि, पवित्र वट वृक्ष सिद्धवट आदि तीर्थ स्थान इसी नदी के किनारे पर हैं जो कि इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं।
क्या है गुप्त जल धरा का रहस्य –
अब जैसा कि आप जान ही गए होंगे कि क्षिप्रा नदी एक प्राचीन नदी है और जैसा उसका आज का स्वरूप है उससे जाहिर है कि पहले वैसा नहीं बल्कि और भी विशाल रहा होगा। यह बात सब लोग जानते ही हैं कि नदी के अंदर भी जल के बहुत से स्रोत होते हैं। जिनसे जमीन का जल नदी में आता रहता है। यह जमीन का जल कभी-कभी अपनी आंतरिक भूमि में परिवर्तन होने के कारण जगह बदल देता है और इसकी जल धारा अन्य स्थान से होकर बहने लगती है। चूंकि क्षिप्रा नदी एक प्राचीन नदी है तो उसमें जल स्रोत तो होंगे ही और इतने प्राचीन समय से इस नदी की आंतरिक भूमि में परिवर्तन भी आया ही होगा। ऐसे में स्वाभाविक है कि जल के स्रोत से कोई जल धारा अपने स्थान को छोड़कर किसी अन्य स्थान से बहने लगी होगी। वैज्ञानिक तौर पर इस जल धारा का यही कारण अभी तक समझ आता है।
क्या कहते हैं जानकार–
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उज्जैन यूनिवर्सिटी का आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट वर्तमान में इस जल धारा को ऐतिहासिक नदी के रूप में देख रहा है और इस पर रिसर्च करने की तैयारी कर रहा है। दूसरी ओर प्रो. आर के अहिरवार, जो कि विक्रम यूनीवर्सिटी उज्जैन के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के एचओडी है उनका कहना है कि उज्जैन के प्रयागेश्वर महादेव मंदिर को स्कंद पुराण में गंगा, यमुना का संगम स्थल कहा गया है। तो ऐसा संभव है कि यह “गुप्त गंगा” हो। वहीं, कई लोग यहां इस जल धारा को गुप्त गंगा के रूप में देख रहे हैं।