भारत के उज्जैन में एक ऐसा मंदिर है जहां पर विराजमान है भूखी माता का मंदिर। यह मंदिर राजा विक्रमादित्य के समय का बनाया हुआ है। इस मंदिर में देवी के रूप को प्रसन्न करने के लिए हर रोज नरबलि दी जाती थी। यह प्रथा आज भी प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी देवी की भूख को शांत करता है माता उसके परिवार के सभी कष्टों को दूर कर हर प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। इस मंदिर में आज भी नरबलि देने का प्रचलन चल रहा है।
उज्जैन के शिप्रा नदी के तट पर कई वर्षों से भूखी माता का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है। जो भी यहां पर आता है वह खाली हाथ नहीं जाता। इस मंदिर की खास बात यह है कि राजा विक्रमादित्य के जमाने के इस मंदिर में माता की भूख नरबलि से ही शांत होती है। राजा विक्रमादित्य के समय में इस देवी को हर रोज ही नरबलि दी जाती थी। यही प्रथा आज भी वैसी ही चली आ रही है। मान्यता यह है कि राजवंश के जिस भी युवा को अवंतिका नगरी के राजा के रूप में घोषित किया जाता था, माता उसे खा लेती थीं।
मंदिर से जुड़ी मान्यता-
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एक प्राचीन कथा बताती है कि यहां पर कई देवियां रहती थीं। इन देवियों में से एक देवी नरबलि से अपनी भूख शांत करती थी। इस समय राजा विक्रमादित्य के पास एक दुखी माता आईं और उसने राजा को सारी बात बताई। इस पर राजा ने कहा कि वह देवी से आग्रह करेंगे कि ऐसा न किया जाए और अगर फिर भी देवी नहीं राज़ी हुईं तो वह खुद ही देवी का आहार बन जाएंगे। इसके बाद शहर को पकवानों से सजा दिया गया। सभी जगहों पर कई पकवान बनाए गए। इसी पकवानों के साथ ही राजा ने एक तख्त पर मिठाइयों को भी सजाया और इन मिठाइयों के साथ ही मिठाई से बना एक इंसान रूपी पुतला भी रखा गया। इसके बाद राजा खुद भी तख्त के नीचे छिप कर बैठ गए। रात होने पर सभी देवियां आईं और उन्होंने सारे पकवान खाए। अंत में नरबलि वाली देवी की नजर मानव पुतले पर गई। उन्होंने इस पुतले को खा लिया। माता को यह बहुत ही अच्छा लगा। उन्होंने जानना चाहा कि ऐसा किसने किया, तभी राजा सभी माताओं के सामने आए और देवियों से विनती की कि माता आप सभी नदी के दूसरी ओर विराजमान हो जाइए। देवियों ने कहा ऐसा ही होगा। इसके बाद राजा ने नदी के पार माताओं का मंदिर बनवा दिया। जिसके बाद देवी द्वारा वहां के लोगों की नर बलि नहीं ली गई।
आज के समय में नर बलि के रूप में देवी को गुलगुले का मीठा भोग अर्पित किया जाता है। माघशीर्ष की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा के बीच भूखी माता को मीठा भोग अर्पित किया जाता है। इस दौरान माता के मंदिर के पास मेले जैसा माहौल होता है।