अपने बच्चों को साथ लेकर इन महिला डीएसपी ने निभाई ड्यूटी

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आज के समय में देश काफी आगे बढ़ चुका है, लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं जिनकी सोच काफी पुरानी है और वो लड़का, लड़की में फर्क करते हैं। अगर एक महिला किसी ऊंचे पद पर तैनात है तो ऐसे ही लोग इस तरह की बात करते हैं कि महिलाएं अपने पद की जिम्मेदारियों को सही तरह से पूरा नहीं कर सकती हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि एक महिला जब अपने फर्ज को पूरा करने निकलती है तो वो अपनी पूरी शिद्दत से उसे पूरा करती है। आज हम आपको कुछ ऐसी ही महिलाओं के हौसले की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने फर्ज के आगे किसी भी मुश्किल को नहीं आने दिया।

आर्चना झा- रायपुर के क्राइम ब्रांच में डीएसपी के पद पर काम कर रहीं अर्चना झा से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि महिला पुलिसकर्मी देश की रक्षा नहीं कर सकती हैं। वो भी देश की रक्षा में उतना ही सहयोग देती हैं जितना कि एक पुरुष पुलिस कर्मचारी देता है। उन्होंने अपने बारे में बताते हुए कहा कि जब वो प्रेगनेंट थीं तब भी उन्होंने फील्ड में काम किया है। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं को मैटर्निटी लीव मिलती है, जो कि राज्यों में अब 6 माह तक है लेकिन अर्चना ने बताया कि जब वो प्रेगनेंट थीं तो ये लीव केवल 4 महीने ही थी।

अर्चना के अनुसार उन्हें ऐसे समय में काम करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं इस समय उन्हें दो दिन नाइट ड्यूटी भी करनी पड़ी थी। जिसके कारण उन्हें कई बार तो पूरी-पूरी रात बाहर ही रहना पड़ता था, लेकिन उन्होंने कभी की अपने काम से मुंह नहीं मोड़ा और अपने काम को पूरी मेहनत से पूरा किया।

1Image Source: http://i9.dainikbhaskar.com/

मनीषा ठाकुर- अर्चना झा की ही तरह बलरामपुर की एएसपी मनीषा ठाकुर की भी कहानी है। उन्होंने भी बेटी होने के कुछ ही महीनों बाद अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी। उनकी बेटी उस समय बहुत छोटी थी, जिसके कारण वो उसे घर पर नहीं छोड़ पा रही थीं। वह कम से कम 6 महीने तक अपनी बेटी को साथ लेकर ही नाइट ड्यूटी करती रहीं।

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संध्या द्विवेदी- संध्या द्विवेदी जब तक इंस्पेक्टर रहीं तब तक उन्होंने रायपुर के कई सारे थानों में काम किया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने काम के बीच में किसी को भी नहीं आने दिया। इस विषय पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2010 में हुआ एक दोहरा हत्या काण्ड का केस काफी पेचीदा था, जिसे सुलझाने में उन्हें कम से कम एक साल का समय लग गया। इस दौरान उन्हें अक्सर 24 घंटे तक काम करना पड़ता था और कई बार तो उनके पास इतना समय भी नहीं होता था कि वो कुछ खा सकें। ऐसे में अगर कोई उन्हें यह कहता है कि आप एक महिला हैं ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगी तो उन्हें बहुत बुरा लगता था।

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राजकुमारी कावड़े- राजकुमारी कावड़े को रायपुर में महिला हेल्प लाइन में काम करने वाली सबसे ज्यादा चौकन्नी महिला अधिकारियों में गिना जाता है। उन्होंने अपने करियर के बारे में बाते हुए कहा कि उन्होंने अपने करियर में अब तक चार साल तक नाइट ड्यूटी की है। जिसके कारण उन्हें अपने घर और नौकरी में सामंजस्य बैठाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। उनकी थाने में ड्यूटी सुबह 8 बजे से शुरू होती थी और उसके बाद दिन में 2 बजे तक उनकी पहली शिफ्ट हुआ करती थी। जिसके बाद उन्हें रात 8 बजे से लेकर अगले दिन सुबह के 8 बजे तक थाने में ही रहना पड़ता था।

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नेहा चंपावत- 2004 बैच की आईपीएस अधिकारी एसपी नेहा चंपावत ने भी पुलिस करियर में होने वाली कठिनाइयों को हमेशा ही हंसते हुए हल किया है। उन्होंने 2012 से 2014 तक नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो राजस्थान में काम करते हुए यह महसूस किया कि मेल-फीमेल रेशियो पुलिस विभाग की एक बहुत बड़ी समस्या है। वो भी तब जब आप एक क्रिमिनल के खिलाफ काम कर रहे हों। इतना ही नहीं जब नक्सली विस्फोट हुआ था उस दौरान भी कई लोगों ने उन्हें घटनास्थल पर नहीं जाने दिया था क्योंकि वो एक महिला थीं। इसके बावजूद भी वो अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटीं और रात के समय कुछ साथी अफसरों के साथ घटनास्थल पर गईं।

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मंजूलता राठौर- मंजूलता रायपुर के मौदहापारा थाने की टीआई हैं। उनका कहना है कि उन्हें कभी भी व्यावहारिक तौर पर किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई, लेकिन कई बार उनके लिए भी कुछ नियमों पर अमल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने बताया कि कई बार उन्हें अपनी 7 से 10 घंटे की ड्यूटी करते हुए बिना कुछ खाए ही कम करना पड़ता है।

Upasana Bhatt
Upasana Bhatthttp://wahgazab.com
एक लेखिका होने के नाते दुनिया को देखने का मेरा अपना अलग नजरीया है। मैं अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर लिखना पसन्द करती हुँ ताकि सबके आगे सही तरीके से सच रख सकुं।

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