वर्तमान समय की बात करें तो आज देश दुनिया के वैज्ञानिकों की नजर मंगल ग्रह पर लगी हुई है। अमेरिका के नासा और भारतीय संस्थान इसरो सहित कई और देशों के वैज्ञानिक संस्थान मंगल ग्रह पर पानी और जीवन की संभावना को लगातार खोज रहे हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक के बारे में बता रहे हैं जिसने आज से 1500 साल पहले ही मंगल पर पानी की खोज कर ली थी। इस भारतीय वैज्ञानिक का नाम था वराह मिहिर।
वराह मिहिर का परिचय-
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उज्जैन के कथिपा गांव में 499 ई. में वराह मिहिर का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम आदित्य दास था, जो कि सूर्य उपासक थे। वराह मिहिर ने अपने जीवनकाल में ज्योतिष और गणित पर लंबा शोध किया। इन्होंने समय मापक घटयंत्र, लौह स्तंभ और वेधशाला का निर्माण अपने जीवनकाल में कराया। इन्होंने अपने-अपने शोध कार्य को सिद्धांत के रूप में “सूर्य सिद्धांत” नामक ग्रंथ में लिखा जो की अब उपलब्ध नहीं है।
सूर्य सिद्धांत में था मंगल के रहस्यों का वर्णन –
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सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ को वराह मिहिर ने 1515 साल पहले लिखा था। अपने इस ग्रंथ में उन्होंने मंगल के अर्धव्यास का वर्णन किया था, जिसकी गणना नासा और इसरो की गणनाओं से काफ़ी मिलती जुलती है। अपने ग्रन्थ में वराह मिहिर ने उस समय ही मंगल पर लोहे और पानी के होने की बात लिख दी थी। आज के समय की बात करें तो 2004 में नासा ने रोवर सैटेलाइट के द्वारा मंगल के उत्तरी ध्रुव पर ठोस रूप में लोहे और पानी के बारे में पता लगाया था। इससे वराह मिहिर के ग्रन्थ की बातें स्वयं ही सत्यापित होती हैं। वराह मिहिर दूसरी ओर लिखते हैं कि हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से हुई है और मंगल भी सूर्य की संवर्धन किरण से जन्मा है। इस बात को भी आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं और सूर्य से ही सौर मंडल के सभी ग्रहों की उत्पत्ति को स्वीकारते हैं।