वैसे तो अपने देश में कभी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं रही है, पर आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलाने जा रहे रहे हैं जिसने नेत्रहीन होने के बावजूद हजारों नेत्रहीन लोगों के लिए रोशनी का रास्ता खोल दिया है। जानकारी के लिए बता दें कि यह महिला जन्म से नेत्रहीन है, पर इसके द्वारा किये गये काम से आज खुली आंखों वाले भी अचरज में हैं। इस महिला का नाम है “नफीसा”।
कौन है नफीसा –
नफीसा का पूरा नाम “नफीसा तरीन” है, जो कि झारखंड की है। नफीसा के पिता का नाम मोहम्मद मुख़्तार असलम है। नेत्रहीन होने के बावजूद वर्तमान में नफीसा एक स्कूल में हिंदी की अध्यापिका हैं। नफीसा की पढ़ाई की बात करें तो उसने बनारस के जीवन ज्योति विद्यालय से 12वीं की है। इसके अलावा नफीसा ने दिल्ली स्थित एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा और हिंदी में बी.एड. भी किया है।
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नफीसा बताती हैं कि बीए करते समय ही उनके मन में कुरान को पढ़ने की इच्छा पैदा हुई, पर नेत्रहीन होने के कारण कोई भी उनको कुरआन पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। आखिरकार नफीसा को मोहम्मद नफीस का सहारा मिला और वे कुरान की आयतों से रूबरू हो पाईं।
नेत्रहीनों के लिए बनाई “ब्रेल कुरान” –
क़ुरान को पढ़ते समय नफीसा को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा। नेत्रहीनों को कुरान पढ़ने में आने वाली इन समस्याओं को नफीसा अच्छे से समझती थीं। इसलिए उन्होंने नेत्रहीन लोगों के लिए कुरान लिखने का निर्णय लिया ताकि नेत्रहीन लोग भी बिना किसी परेशानी के कुरान के इल्म से वाकिफ हो सकें। इसके लिए नफीसा ने “ब्रेल-हिंदी” में कुरान लिखने की ठानी।
इस कार्य को नफीसा ने 2005 में शुरू किया और 2008 में “ब्रेल-हिंदी” लिपि में कुरान को लिख कर पूरा किया, पर इस कुरान में हुई कुछ गलतियों को सही करने कारण यह कुछ देरी से लोगों के सामने आई।
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क्या कहते हैं लोग –
नफीसा के पिता मुख्तार का कहना है कि “मदरसों और मस्जिदों के प्रधानों से इस कुरान को पढ़वा कर तस्दीक कर ली गई है। दूसरी ओर मुफ़्ती मंसूर अनवर का कहना है कि जो काम आंख वाले इंसान नहीं कर पाये वो नफीसा ने कर दिया। नफीसा का काम काबिले-तारीफ है”।
अपनी मेहनत से 965 पन्नों की कुरान लिखने वाली नफीसा का कहना है की “पिता की प्रेरणा और हाफिज की मेहनत से ही मैं कुरान को ब्रेल लिपि में उतार पाई”।