बढ़ते प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि अब वह समय आ चुका है जब हमें शवदाह ग्रहों को ग्रीन करना चाहिए। सुप्रीम के मुताबिक अब हमें शव जलने के पारम्परिक तरीकों की बजाए शव जलाने के लिए बिजली या सीएनजी को उपयोग में लाना चाहिए।
लकड़ी के जलने से फैलता है प्रदूषण
दरअसल केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को इस बारे में चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ ताजमहल के आस-पास ही नहीं बल्कि हर जगह शवों को जलाने के लिए बिजली या सीएनजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पिछले कुछ समय से ताजमहल के पास के इलाकों में शवों के जलने से हो रहे प्रदूषण को गौर में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही।
सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए यह सुझाव दिया है कि शवों को जलाने के लिए बिजली, सीएनजी के अलावा कुछ दूसरे विकल्पों के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।
कोर्ट ने इस बारे में अपनी पिछली सुनवाई में कहा था कि दिल्ली में बिजली के शवगृहों की तर्ज पर इस बात पर विचार किया जाए। कोर्ट ने शवदाह के इस तरीके को नि:शुल्क करने की बात भी कही। कोर्ट का मानना है कि शव जलाने के लिए लकड़ी का इस्तेमाल होने से प्रदूषण बढ़ता है।
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दरअसल इस मामले में सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी बनारस के गंगा घाटों पर शवदाह से होने वाले प्रदूषण की बात पर चिंता व्यक्त कर चुका है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पहले ही सरकार से इस बारे में कोई उचित कदम उठाने की बात कर चुका है, लेकिन अगर इस बात पर एक आम हिन्दू नागरिक की राय पूछी जाएगी तो ज्यादातर लोग इस बात से सहमत नज़र नहीं आएंगे क्योंकि हिन्दू धर्म में मरने के बाद इंसान के शरीर को लकड़ी की चिता पर जलाने की बात कही गई है। फिलहाल आगे चाहे सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला ले, देश के कानून का पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य है।