ऐसा कहा जाता है कि अगर ईश्वर जीवन में कोई एक द्वार बंद करता है तो कई रास्ते खोल भी देता है। इसी बात की मिसाल बने लुइस ब्रेल, जिन्होंने अपनी आंखों की रोशनी चले जाने के बाद भी हार नहीं मानी और अपने जैसे करोड़ों दृष्टिहीनों के लिए लिखना-पढ़ना संभव बनाया।
इतिहास में ऐसे कई लोग देखने को मिल जाएंगे जिन्होंने शारीरिक अक्षमताओं के बाद भी दुनिया को वो कर के दिखाया जो आम लोग सोच भी नहीं सकते। खुद दृष्टिहीन होते हुए भी लुइस ब्रेल ने दृष्टिहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। उन्होंने जीवन में चुनौतियों का सामना करते हुए एक ऐसी लिपि तैयार की जो दृष्टिहीनों के लिए वरदान सिद्ध हुई।
जानें ऐसा क्या हुआ कि लुइस ब्रेल लिपि बनाने के लिए प्रेरित हुए –
1.लुइस ब्रेल का जन्म फ्रांस में सन् 1809 को हुआ था। उनके पिता घोड़े की काठी ( घोड़े पर बैठने के लिए सीट के रूप में उपयोग किया जाता है) बनाने का काम किया करते थे। इस काम को करने के लिए उनकी एक दुकान भी थी। लुइस ब्रेल चार भाई-बहन थे, जिनमें लुइस सबसे छोटे थे।
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2.जब वह तीन साल के थे तो अपने पिता की दुकान में खेलने लगे। इस दौरान उन्होंने एक नुकीले हथियार से चमड़े के टुकड़े में छेद करने की कोशिश की, लेकिन नुकीला हथियार फिसलकर सीधा उनकी आंख में चला गया। जिसके बाद उनकी आंख जख्मी हो गई और उसमें इन्फेक्शन हो गया। इसके बाद धीरे-धीरे यह इन्फेक्शन उनकी दोनों आंखों में फ़ैल गया और 5 साल की उम्र तक वह पूरी तरह से दृष्टिहीन हो चुके थे।
3.इतना सब होने के बाद भी लुइस ने हार नहीं मानी। वह कुछ ऐसा बनाना चाहते थे जिससे उनके जैसे बाकी दृष्टिहीन लोगों की मदद हो सके। इसलिए उन्होंने एक ऐसे राइटिंग स्टाइल की खोज की जिसमे 6 डॉट कोड्स थे। इन डॉट्स को जोड़कर दृष्टिहीन लोग शब्द, अंक और अक्षर बना सकते थे।
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4.दृष्टिहीनों के लिए बनाया गया यह विशेष राइटिंग स्टाइल आगे चल कर ब्रेल लिपि के नाम से जाना गया।
5.ब्रेल लिपि में प्रकाशित पहली किताब सन् 1829 में आई थी।
6.लुइस ब्रेल को संगीत में विशेष रुचि थी। उन्हें कई तरह के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाने आते थे।
7.6 जनवरी 1852 में मात्र 43 साल की उम्र में लुइस ब्रेल की टीबी की बीमारी से मृत्यु हो गई।