छत्तीसगढ़ भारत का एक ऐसा राज्य है जहां की महिलायें और पुरुष आज भी “टोहनी” शब्द पर विश्वास करते हैं, असल में इस शब्द को ही हमारे समाज में “डायन” के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास को यदि आप देखें तो इस राज्य में बंगाल की तरह से ही तंत्र-मंत्र की अवधारणा बहुत समय पहले से अपना प्रभाव बनाये हुए थी। वर्तमान समय में विज्ञान और आधुनिक युग की शुरुआत के बाद इस अवधारणा में बड़ी कमी आई है पर आज भी छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सो में तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल आदि की विचारधारा ने अपनी पैठ बनाई हुई है। इस विचारधारा के संबंधित जो अवधारणाएं और मान्यताएं यहां के लोगों की बनी हुई है उसके अनुसार आज हम आपको इस आलेख में जानकारी दे रहें हैं। यहां हम यह साफ कर दें कि हमारा उद्देश्य किसी प्रकार का अन्धविश्वास फैलाने का नहीं है बल्कि समाज की ही एक विचारधारा को आपके सामने लाने का है।
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छत्तीसगढ़ में कुछ महिलाओं के डायन बनने की विचारधारा आज भी कई लोगों के मन में हैं, कुछ लोगों का कहना है कि डायन बनने की एक प्रक्रिया होती है। जिसको पूरा करने के बाद में महिला डायन बन जाती। आज हम आपके सामने वह डायन बनने की प्रक्रिया को रख रहें हैं। आइये जानते हैं गुप्त तांत्रिक प्रक्रिया को।
ये हैं डायन बनने की तांत्रिक प्रक्रिया –
छत्तीसगढ़ में डायन शब्द की जगह “टोहनी” (टोना-टोटका करने वाली महिला) शब्द ज्यादा चलता है। इस प्रकार की महिला का कार्य दूसरे लोगों को नुकसान पहुंचना ही होता है। लोगों का मानना है कि टोहनी यानी डायन महिला किसी को अपंग कर सकती है तथा किसी को बीमार करना या घर का सामान गायब कर देना जैसे कार्य ये अच्छे से कर सकती हैं। लोगों और कुछ तांत्रिको का कहना है कि डायन के पास एक ढाई अक्षर का मंत्र होता है जो की तांत्रोक्त विधि से सिद्ध किया होता है, उसी से इनको दूसरे लोगों का नुकसान करने की शक्ति मिलती है।
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इस प्रकार होता है डायन मंत्र सिद्ध –
अमावस्या की रात में श्मशान के अंदर इस तांत्रोक्त विधि से टोहनी बनने आई अन्य सभी महिलाओं को एक टोहनी बतौर ट्रेनर सभी कुछ समझाती है और उन सभी को ट्रैंड करती है। ये सभी महिलायें उस समय बिना कपड़ों के ही श्मशान में इक्कठा होती हैं। इस तंत्रोक्त कैंप में शामिल होने वाली महिलाएं अपने घर के सभी सदस्यों को किसी खास मंत्र से बेहोश कर के ही यहां आती हैं ताकि अन्य घर वालों को उनके टोहनी बनने की खबर न हो सकें, संभवतः यह मंत्र उनको मुख्य टोहनी इस कैम्प के लगने से पहले ही देती है।
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इस तांत्रोक्त प्रक्रिया में महिलायें अपने मल से दीया यानी दीपक बनाती हैं तथा अपनी लार से उसको जलाती हैं और एक नींबू काट कर मुख्य मन्त्र का जाप करती हैं। इस प्रक्रिया में सिद्ध होने वाली टोहनी महिलाओं को “बीर” यानी कुछ शक्तिशाली अदृश्य आत्माएं मिलती हैं जो की उस महिला की आज्ञा मानते हैं। ये महिलाएं आत्माओं से बात कर सकती हैं तथा किसी का भी बुरा कर सकने की क्षमता इनमें आ जाती है।
“टोहनी तीया” नाम का इन टोहनी महिलाओं का एक त्यौहार होता है जो की प्रेत जगाने का विशेष दिन होता है। इस दिन ये महिलाएं प्रेत जगाती हैं। हरेली अमावस्या और दीपावली की रात को टोहनी अपने मुख्य मंत्र से साधना करती हैं और यह लगातार 3 साल करनी ही होती है अन्यथा टोहनी महिला का मंत्र खो जाता है। देखा जाये लोगों की टोहनी और उसकी उपासना के संबंध में बताई गई उपरोक्त अवधारणा और विचार कहीं से कहीं तक भी आज के जीवन में मेल नही खाते हैं साथ ही ये तर्कयुक्त भी नही हैं पर फिर भी ऐसे कई विचार लोगों के मन में घर किये बैठे हैं। जिसके कारण कई बार महिलाओं को डायन के नाम पर सरेआम जलाने या मार देने की खबरें आती है। खैर सच्चाई जो भी पाठकगण स्वयं ही इस पर अपने विवेक से विचार करें।