ईद के त्यौहार को सब लोग अच्छे से जानते हैं परन्तु यह बहुत कम लोग ही जानते हैं की चांद को देखकर ईद क्यों मनाई जाती, आखिर चांद और ईद के त्यौहार के बीच क्या कनेक्शन है। आइये आज हम आपको इसी के बारे में बताते हैं। सबसे पहले तो आप यह जान लें की ईद हमेशा रमजान के 30 वे रोज़े के बाद मनाई जाती है और इस बार भी इस तरह ही ईद का यह त्यौहार 7 जुलाई को मनाया जा सकता है। 620 ईस्वी में पहला ईद-उल -फितर का त्यौहार मनाया गया था। बहुत कम लोग ही जानते हैं की ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है और इस नाम में ही इस बात का कारण छिपा हुआ है की चांद को देखने के अगले दिन ही ईद को क्यों मनाया जाता है। असल में ईद-उल-फितर का त्यौहार स्लामिक कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन ही मनाया जाता है और इस कैलेंडर के बाकी महीनों की तरह ही यह महीना भी नया चांद देख कर ही शुरू होता है इसलिए ही ईद का यह त्यौहार चांद को देख कर मनाया जाता है। यहां पर यह जान लेना भी जरुरी है की इस्लामिक कैलेंडर चांद की काल गणना के अनुसार ही चलता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 2 प्रकार की ईद मनाई जाती है। पहली ईद-उल-जुहा या बकरीद और दूसरी ईद-उल-फितर या मीठी ईद।
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ईद-उल-फितर के दिन सभी लोगों के घर में मीठे पकवान बनते हैं, सभी लोग पहले नमाज पढ़ने के लिए ईदगाह जाते हैं और खुदा का शुक्रिया करते हैं की उसने हमें रोजे रखने की क्षमता दी। नमाज के बाद जरूरतमंद लोगों को जकात भी दिया जाता है, यह इस्लाम मानने वालों के लिए एक फ़र्ज़ होता है। इस प्रकार के दान को “जकात-उल- फितर” कहा जाता है। इन सबके बाद नमाजी सभी लोगो से गले मिलकर अपने पुराने मनमुटावो को दूर कर एक नए साल की शुरुआत करते हैं। “ईद-उल- फितर” में फितर शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ होता है “फितरा करना”, इसको ईद की नमाज पढ़ने से पहले हर नामाजी को अदा करना होता है।
इस प्रकार से देखा जाए तो ईद का त्यौहार न सिर्फ मीठे पकवानों को खाने भर का होता है बल्कि यह खुदा की इबादत से लेकर जरूरतमंदों की मदद और सभी लोगों को भाईचारे का सन्देश देने का त्यौहार है।