सन् 1947 में भारत के आजाद होने के बाद से कांग्रेस पार्टी भारत के मुख्य राजनैतिक दलों में से एक है। भारत में कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता के युद्ध के इतिहास से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस परिवार भारतीय सियासत का सबसे बड़ा परिवार माना जाता है। इस परिवार के तीन सदस्य जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल गांधी परिवार की बड़ी बहू ने कांग्रेस की कमान संभाली हुई है, तो वहीं परिवार की छोटी बहू बीजेपी पार्टी की सदस्य और केंद्रीय मंत्री हैं। यहां सवाल ये उठता है कि सोनिया और मेनका के बीच मनमुटाव कब और कहां से शुरू हुआ। इस परिवार में ऐसा क्या हुआ जिससे जेठानी और देवरानी के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई।
रिश्तों में दरार का कारण संजय गांधी की विधवा मेनका गांधी को सम्पत्ति में हिस्सा ना मिलना बताया जाता है। क्या यही कारण है कि मेनका आज कांग्रेस की बजाय बीजेपी की सांसद हैं? क्या सिर्फ इस वजह से सोनिया और मेनका के रिश्तों में दरार आई है? इस आर्टिकल के जरिए
जानिए इस कड़वाहट का पूरा सच..
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भारत के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की दो बहुओं को करीब 34 सालों से एक दूसरे की तरफ देखना तक गंवारा नहीं है, लेकिन जब एक दिन मेनका गांधी ने मीडिया के सामने जेठानी सोनिया गांधी की तारीफ करी तो सवाल उठे कि आखिरकार इन दोनों के बीच की लड़ाई की असल वजह क्या थी? एक समय ऐसा भी था जब गांधी परिवार की दोनों बहुएं एक ही छत के नीचे खुशी से रहती थी। सोनिया के बहू बन जाने के बाद संजय गांधी की शादी मेनका गांधी से हुई थी। दोनों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार स्नेहशील था, लेकिन अचानक दोनों के बीच दूरियां आ गईं।
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ये वाकया साल 2014 का है जब चुनाव के दौरान मेनका गांधी ने सोनिया पर लगातार कई बार जुबानी हमले किए थे। मेनका ने उन्हें ये तक कह दिया था कि “सोनिया के पास इतने पैसे कहां से आए, क्या वो इतनी रकम इटली से दहेज में लाई हैं” सिर्फ इतना ही नहीं मेनका ने सोनिया पर निशाना साधते हुए ये भी कहा था कि “सोनिया को भारत में रहते हुए सालों हो गए लेकिन फिर भी उन्हें स्पीच पढ़कर देनी पड़ती है, वो खुद से कुछ नहीं बोल पाती हैं।”
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साल 1969 में सोनिया की शादी राजीव गांधी से हुई थी। उसके करीब 5 साल बाद राजीव गांधी के छोटे भाई संजय गांधी और मेनका शादी के बंधन में बंधे। संजय को इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी कहा जाता था जबकी सोनिया और राजीव हमेशा राजनीति से दूर रहते थे, लेकिन सन् 1977 में सब कुछ बदल गया। इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हार गई और सन् 1980 में अचानक विमान हादसे में संजय गांधी की मौत हो गई। जब संजय गांधी की मौत हुई थी तब मेनका गांधी की गोद में 3 महीने के वरुण गांधी थे। जिसके बाद इंदिरा गांधी मेनका को लेकर काफी चिंता में रहती थी। इंदिरा गांधी ने मेनका का मन बहलाने के लिए उन्हें राजनीतिक कामों से भी जोड़े रखा, लेकिन मेनका को झटका तब लगा जब राजीव गांधी ने राजनीति में कदम रखा। मेनका संजय गांधी की विरासत को संभालने का सपना देख रही थीं। इस बात का जिक्र मेनका इंदिरा गांधी के सामने अक्सर करती थीं जिससे इंदिरा उनसे नाराज रहने लगी। फिर एक दिन बात इतनी बढ़ गई कि इंदिरा ने आधी रात को मेनका को घर से बाहर निकाल दिया।
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घर ने निकाल देने के बाद मेनका ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने संजय गांधी के समर्थकों के जरिए राष्ट्रीय संजय मंच बनाया। मेनका के मन में कांग्रेस के खिलाफ इतना जहर भर गया कि उन्होंने सन् 1984 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। जिसमें उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव हारने के बाद मेनका वीपी सिंह की जनता दल में शामिल हुईं जिसमें वो कैबिनेट मंत्री बन गईं।
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फिर 21 मई 1991 को राजीव गांधी की एक बम धमाके में मौत हो गई। जिसके कई सालों बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और दूसरी तरफ मेनका ने कांग्रेस की विपक्षी पार्टी बीजेपी का दामन थामा। दोनों के बीच की दूरियां उनके बच्चों के बीच भी कायम हैं। दोनों बहुओं के बीच में इतनी कड़वाहट पैदा हो चुकी है कि वे दोनों के बच्चों की शादी में भी शामिल नहीं हुईं। वरुण गांधी की शादी में सोनिया नजर नहीं आईं तो प्रियंका की शादी में मेनका। हालांकि लोगों की उम्मीद थी वरुण की शादी में सोनिया या राहुल जरूर शामिल होंगे।