आज का इतिहास- महाराणा प्रताप का हुआ जन्म

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महाराणा प्रताप एक ऐसे शूरवीर राजा जिनकी वीर गाथा के सामने अकबर तक ने अपने घुटने टेक दिये थे। जिसका नाम आते ही एक वीर योद्धा का चित्र हमारे दिल में अपने आप ही उभर कर सामने आ जाता है। इस वीर योद्धा का प्रेम अपनी मातृभूमि के प्रति इतना ज्यादा गहरा था कि इन्होंने अपने राज्य की मिट्टी के लिये अपनी जान की बाजी लगाने में भी कभी संकोच नहीं किया। कई दिनों तक वो अपने परिवार के साथ जंगलों में भूखे-प्यासे भटकते रहे, यहां तक की घास की रोटी खाने को भी मजबूर होना पड़ा सब कुछ सहने के बाद भी इस महान तेजस्वी शूरवीर ने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके और अकबर के दरबार में सेनापती बनने का ओहदा स्वीकार ना करते हुये उन्हें मुंहतोड़ जबाब दिया।

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शूरवीर राजा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में एक राजवंश परिवार में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह और उनकी माता रानी जैवन्ताबाई थीं जो कि पाली के सोनगरा राजपूत राजवंश घराने की अखैराज की बेटी थीं। महाराणा प्रताप जन्म से ही काफी होनहार थे और इसी कारण कुंभलगढ का किला आज अपनी आन-बान-शान से खड़ा हैं। वह इसी राजा की बहादुरी की देन है जो यह कई पहाड़ियों पर अपनी विशालता के साथ फैलते हुये आज के इतिहास की जानकारी दे रहा है।

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संघर्ष और शान
महाराणा ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुये कई बड़े बड़े युद्ध किये पर कभी भी किसी के सामने घुटने नहीं टेके। अकबर को भी उन्होनें परास्त कर अपनी वीरता की अद्भुत मिशाल पेश की थी और इसी वीरता को देख महाराणा प्रताप को मनाने के लिए अकबर ने अपने कई खास लोगों जैसे जलाल सिंह, मानसिंह, भगवानदास और टोडरमल जैसे राजपूतों को उनके पास भेजा लेकिन महाराणा ने स्वतंत्रता की सूखी रोटी को खाना पंसंद किया पर किसी की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।

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महाराणा प्रताप एक ऐसे बहादुर राजपूत थे जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी अंतिम सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की और 29 जनवरी 1597 को दिलिया से अंतिम विदाई लेते हुये अपना इतिहास लिखते हुये वीरगति को प्राप्त हुये और आज भी इनकी वीरता की गाथा से भारत की धरती गौरवान्वित हैं। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

Pratibha Tripathi
Pratibha Tripathihttp://wahgazab.com
कलम में जितनी शक्ति होती है वो किसी और में नही।और मै इसी शक्ति के बल से लोगों तक हर खबर पहुचाने का एक साधन हूं।

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