वर्तमान समय में दारुल उलूम देवबंद का इस्लामिक जगत में एक अहम स्थान है जिसने न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय को प्रभावित किया है। दारुल उलूम देवबंद इस्लाम और उसके उसूलों को उनके मूल रूप में प्रसारित करता है और कई प्रकार के आडम्बरों और अंधविश्वासों को इस्लाम की मूल शिक्षा से निकाल कर सही और शुद्ध शिक्षा को मुहैया कराता है।
देवबंद विश्वविद्यालय की स्थापना 30 मई 1866 में मौलाना क़ासिम नानौतवी और हाजी आबिद हुसैन के द्वारा की गई थी। उड़ीसा के गवर्नर श्री बिशम्भर नाथ पाण्डे ने एक लेख में लिखा है कि “दारुल उलूम देवबन्द भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्र बिन्दु जैसा ही था, जिसकी शाखाएं दिल्ली, दीनापुर, अमरोत, कराची, खेडा और चकवाल में स्थापित थी। भारत के बाहर उत्तर पशिमी सीमा पर छोटी सी स्वतंत्र रियासत ”यागिस्तान“ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था, यह आंदोलन केवल मुसलमानों का न था बल्कि पंजाब के सिक्खों व बंगाल की इंकलाबी पार्टी के सदस्यों को भी इसमें शामिल किया था।”
दारुल उलूम देवबंद में आज पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भोजन से लेकर पढ़ने और रहने की सभी सुविधाएं मुफ्त दी जाती हैं। दारुल उलूम में कई फ़ारसी,अरबी तथा उर्दू के अलावा कम्प्यूटर और पत्रकारिता के कोर्स भी कराये जाते हैं और इस विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है तथा उसके बाद ही आपको यहां प्रवेश मिलता है।
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गुरु अर्जुन देव जी का निधन
आज के दिन न सिर्फ दारुल उलूम की स्थापना हुई थी बल्कि आज के दिन 30 मई को सिक्ख धर्म के गुरु अर्जुन देव का निधन भी हुआ था, जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि गुरु अर्जुन देव, सिक्ख धर्म के चौथे गुरु रामदास जी के पुत्र थे और इनके बाद अर्जुन देव जी सिक्ख धर्म के पांचवे गुरु बने थे। गुरु अर्जुन देव का जन्म 18 वैशाख 7 संवत 1620 (15 अप्रैल सन् 1563) को हुआ था। इनकी माता जी का नाम बीबी भानी जी था। गुरु अर्जुन देव को जहांगीर द्वारा बंदी बना कर बहुत यातनाएं दी गई थी। जिसके बाद 30 मई 1606 में गुरु अर्जुन देव अपना शरीर छोड़ कर ज्योतिजोत समा गए थे।