ऐसा कहा जाता है कि मर्द के बिना हर घर सुना-सुना होता है। मर्द के बिना उसके परिवारवालों का कोई वजूद नहीं होता है। लेकिन ऐसा कहना आज के इस केस में बिल्कुल गलत होगा। मुजफ्फरनगर के मीरापुर दलपत में रहने वाली महिला कमला एक जाट परिवार में जन्मी थी। शादी के कुछ समय बाद ही पति की मौत हो गई, पति की मौत के बाद ससुरालवालों ने उससे उसकी बेटी छीन ली। कमला के माता पिता की मौत पहले ही हो गई थी, जिसके बाद वह अपने दो भाईयों के पास मदद के लिए पहुंची, लेकिन दोनों ने किसी भी तरह की मदद करने के लिए मना कर दिया। कमला का तीसरा भाई निशक्त था, उसने कमला को अपने घर में पनाह दी। तीसरे भाई को कैंसर की बीमारी थी, जिसके कारण उसकी भी मृत्यु हो गई। कमला के भाई ने मरते समय अपने दो बेटों की जिम्मेदारी उस पर सौंप दी। भाई के इस वादे को पूरा करने के लिए कमला को अपना भेष औरत से मर्द का करना पड़ा।
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कमला के भाई की जो थोड़ी बहुत खेती थी, उसमें वह रात भर काम करती रहती और घर में कुछ पैसे कमा कर लाती। कमला जहां काम करने जाती वहां रात को महिलाओं के लिए जाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं था, इसलिए कमला अपने सिर में गमछा, हाथ में लाठी हमेशा रखती थी।
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बता दें कि कमला के बाल पहले काफी लंबे हुआ करते थे, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी सिर पर आने से उसे अपना पूरा रूप बदलना पड़ा। कमला खेतों में हल, फावडा चलाने के साथ ही ट्रैक्टर चलाना भी जानती हैं। कमला की जिदंगी के दुख यही दूर नहीं हुए, कमला की इकलौती बेटी जो कि ससुरालवालों ने छीन ली थी, उसकी शादी हो गई। बेटी कभी कभार समय निकाल कर मां से मिलने आती थी और मां के हालचाल पूछ लिया करती थी। लेकिन भगवान को कमला की यह खुशी नहीं देखी गई, बेटी के पति के बाहर किसी महिला से अवैध संबंध होने की खबर सुनकर बेटी ने खुदकुशी कर ली।
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भतीजे की पत्नी ने भी कमला पर काफी जुल्म किए, जिसके बाद कमला जानवरों के लिए बने घर में रहने लगी। आज कमला कुछ दूसरी औरतों के लिए संघर्ष कर रहीं हैं। बीना दीदी के साथ मिलकर आज वह गांव की हर महिला को जागरूक करने का काम करती है। कमला से हमें यही सीखने को मिलता है कि भले ही दुनिया में लाखों दुख आ जाए, लेकिन हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।