लावारिस लाशों का कोई मजहब नहीं होता इसलिए उनके अंतिम समय को सही बनाने के लिए कुछ फरिश्ते अचानक ही पहुंच गए। आज हम आपको मिलवा रहें हैं ऐसे 2 फरिश्तों से जिन्होंने धर्म और मजहब से ऊंचा उठकर कुछ ऐसा किया। जिसको जानकर आप उनकी तारीफ किये बिना रह नही पाएंगे। सबसे पहले हम आपको बता दें कि यह मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर का है। जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अस्पताल में 3 लावारिस लाशें पड़ी थी। इनकी किस्मत इतनी खराब थी कि उसने मौत के बाद इन लोगों का साथ नहीं दिया।
मृत्य के बाद इन लोगों के परिजन लाशों को लेने के लिए ही नहीं आये। परिणाम यह निकला कि ये लावारिस लाशें अस्पताल की मरचुरी में बंद कर दी गई। कुछ समय बाद लाशों से बदबू उठने लगी। इस बारे में जिला अस्पताल को सूचित किया गया, पर कोई रिजल्ट नहीं निकला। तभी अस्पता में 2 फरिश्ते समान लोग पहुचें तथा जातपात और धर्म से ऊपर उठकर उन्होंने पुत्र के रिश्ते को निभाते हुए इन लाशों का अंतिम संस्कार कराया।
इस प्रकार से हुआ अंतिम संस्कार
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तीनों लाशों के अंतिम संस्कार का मामला जब जिला प्रशासन के पास में पंहुचा तो वहां भी 2 विभागों के बीच यह मामला झूलता रहा। इसके बाद बात पुलिस प्रशासन तक पहुंची तब पुलिस ने गरीब नवाज कमिटी के संयोजक सैयद इनायत अली तथा मोक्ष मानव समिति के संयोजक आशीष ठाकुर से बातचीत की। इस खबर को सुनकर दोनों ही लोग अपनी टीम के साथ मानव धर्म की खातिर मरचुरी पहुंच गए। दोनों टीमों के लोगों ने बहुत शिद्दत के साथ शवों की साफ सफाई की तथा शवों को ले जानें की पूरी व्यवस्था की। इसके बाद तिलवारा घाट श्मशान भूमि में तीनों शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इन लोगों के इस कार्य को देखकर अस्पताल वाले भी हैरान थे और वे इन लोगों को फरिश्ता ही बता रहें थे।